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तीर्थङ्कर महावीर भगवान्-"कालोदायी ? केवल एक रूपी अजीवकाय पुद्गलास्तिकाय 'पर ही बैठने आदि की क्रिया हो सकती है । अन्य पर नहीं ।”
कालोदायी-पुद्गलास्तिकाय में जीवों के दुष्ट विपाक कर्म लगते हैं ?"
भगवान्-"नहीं कालोदायिन् ! ऐसा नहीं हो सकता । परन्तु अरुपी जीवस्तिकाय के विषय में पाप फल-विपाक सहित पापकर्म लगता है।"
इस प्रकार भगवान् से उत्तर पाकर कालोदायी को बोध हो गया। उसने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन और नमस्कार किया और बोला"भगवन् ! मैं आपसे विशेष धर्म-चर्चा सुनना चाहता हूँ।”
भगवान् का उपदेश सुनकर कालोदायी स्कंदक की तरह प्रजित हो गया और ११ अंग आदि का अध्याय करके वह विचरने लगा।
उदक को उत्तर राजगृह-नगर के बाहर उत्तर पूर्व दिशा में नालंदा' नाम की बाहिरिका (उपनगर) थी। उसमें अनेक भवन थे । उस नालंदा-नगर में लेप नामक एक धनवान गाथापति रहता था। वह श्रमणोपासक था। नालंदा के ईशान कोण में शेषद्रव्या-नामक उसकी एक मनोहर उदकशाला थी। उसमें कई सौ खंभे थे और वह बड़ी सुन्दर थी। उस उदकशाला के उत्तर-पूर्व में हस्तियाम-नायक वनखंड था। उस वनखंड के आरामागार में गौतम स्वामी (इन्द्रभूति) विहार कर रहे थे। उसी उपवन में पार्श्वनाथ का अनुयायी निर्गथ पार्श्वसंतानीय पेढालपुत्र उदक-नामक निर्गेथ ठहरा था ।
१-भगवती सूत्र शतक ७, उद्देशा १०
२-यह नालंदा राजगृह से १ योजन की दूरी पर बतायी गयी है (सुमंगल विलासिनी १, पृष्ठ ३५) वर्तमान नालंदा राजगृह से ७ मील की दूरी पर है (प्राचीन तीर्थमाला संग्रह, भाग १, भूमिका, पष्ठ १८,१६) यह स्थान बिहार शरीफ से ७ मील दक्षिण-पश्चिम है। ( नालंदा ऐण्ड इट्स एपीग्राफिक मिटीरियल मेमायर्स आव आालाजिकल सर्वे श्राव इंडिया-सं० ६६ पृष्ठ १)
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