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कालोदायी की शंका का समाधान
२५१.
अपने को धर्मास्तिकाय की बात अज्ञात और अप्रकट है । गौतम स्वामी थोड़ी दूर से जा रहे हैं | अतः उनसे इस सम्बन्ध में पूछना श्रेयस्कर है । " सभी ने बात स्वीकार की और वे सभी उस स्थान पर आये जहाँ गौतम स्वामी थे ।
वहाँ आकर उन लोगों ने गौतम स्वामी से पूछा - "हे गौतम, तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकायों की प्ररूपणा करते हैं । वे उनमें रूपिकाय यावत् अजीवकाय बताते हैं । हे गौतम ! यह कैसे ?”
इस प्रश्न पर गौतम स्वामी ने उनसे कहा - "हे देवानुप्रियो ? हम 'अस्तिभाव' में नास्ति नहीं कहते और नास्तिभाव को अस्ति नहीं कहते । हे देवानुप्रियो ? अस्तिभाव में सर्वथा 'अस्ति' ही कहना चाहिए और नास्तिभाव में 'नास्ति' ही करना चाहिए । अतः हे देवानुप्रियो ? तुम स्वयं इस प्रश्न पर विचार करो ।"
अन्यतीर्थिकों को इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी गुणशिलक चैत्य मैं लौटे |
उसके बाद जब भगवान् महावीर विशाल जनसमूह के समक्ष उपदेश देने में व्यस्त थे, कालोदायी भी वहाँ आया । भगवान् महावीर ने कालोदायी को सम्बोधन करके कहा - "हे कालोदायी ! तुम्हारी मंडली में मेरे पंचस्तिकाय प्ररूपणा की चर्चा चल रही थी । पर, हे कालोदायी मैं पंच अस्तिकायों की प्ररूपणा करता हूँ-धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय | उनमें से चार अस्तिकायों को अजीवास्तिकाय और अजीवरूप कहता हूँ। और पुद्गलास्तिकाय को रूपिकाय कहता हूँ ।"
इसे सुन कर कालोदायी ने कहा - "हे भगवन् ! इस आरूपी अजोवकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और अकाशास्तिकाय पर कोई बैठने, लेटने, खड़े रहने अथवा नीचे बैठने आदि में समर्थ है !"
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