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तीर्थङ्कर महावीर उसके बाद गौतम स्वामी ने पूछा--"अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं कि प्राणातिपात मृषावाद यावत मिथ्यादर्शनशल्य में लिप्त प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य ?
"इसी प्रकार दुष्ट भावों का त्याग करके धर्म मार्ग में चलने वाले प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य ?" इस प्रकार जीव और जीवात्मा की अन्यता सम्बंधी कितने ही प्रश्न गौतम स्वामी ने पूछे । __ भगवान् ने अपने मत का स्पष्टीकरण करते हुए कहा-"अन्यतीर्थकों का यह मत मिथ्या है । जीव और जीवात्मा एक ही पदार्थ हैं।'
फिर गौतम स्वामी ने पूछा-"अन्यतीर्थिक कहते हैं यक्ष के आवेश से आविष्ट केवली भी मृषा अथवा सत्य-मृषा भाषा बोलते हैं ? ___ भगवान्-“अन्यतीर्थकों का यह कहना मिथ्या है। केवल ज्ञानी यक्ष के आवेश से आविष्ट होता ही नहीं। और यक्ष के आवेश से आविष्ट केवली असत्य और सत्यासत्य भाषा नहीं बोलता । केवली पाप-व्यापार हीन और जो दूसरे को उपघात न करे, ऐसी भाषा बोलता है। वह दो भाषा में बोलता है-सत्य और असत्यामृषा' (जो सत्य न हो तो असत्य भी न हो)।
राजगृह से भगवान् ने चम्पा की ओर विहार किया और पृष्ठचम्पा पहुँचे । भगवान् की इसी यात्रा में पिठर, गागलि आदि की दीक्षाएँ हुई।
१-भगवतीसूत्र सटीक श० १७ उद्देशा ३, पत्र १३३२-१३३३ २-भगवतीसूत्र सटीक श० १८ उ०७ पत्र १३७६३-निषष्टिशलाका परुष-चरित्र पर्व १०, सर्ग , श्लोक १७४ पत्र १२४-२ उत्तराध्यायन सटीक, अ० १०, पत्र १५४-१ विस्तृत वर्णन राजाओं वाले प्रकरण में है।
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