SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मदुक और अन्यतीर्थिक २४७ मद् दुक और अन्यतीर्थिक वहाँ से भगवान् फिर राजगृह आकर गुणशिलक-चैत्य में ठहरे । चैत्य के आसपास कालोदयी-शौलोदायी इत्यादि अन्यतीर्थक रहते थे ।' उसी राजगृह नगर में मढुक-नामक एक आढ्य रहता था। भगवान् महावीर के आगमन की बात सुनकर मद्दुक भगवान् का वंदन करने राजगृह नगर के बीच में होता हुआ चला । अन्यतीर्थिकों ने मद्दुक को बुला कर पूछा- "हे मद्दुक ! तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकाय बताते हैं हे मद्दुक यह किस प्रकार स्वीकार्य हो सकता है ?” "जो वस्तु कार्य करे तो उसे हम उसके कार्यों से जान सकते हैं । पर, जो वस्तु अपना कार्य न करे उसे हम जान नहीं सकते।" "हे मद्दुक ! तुम कैसे श्रमणोपासक हो जो तुम पंचस्तिकाय नहीं जानते ?" "हे आयुष्मन् ! पवन है, यह बात ठीक है न ?” । "हाँ ! पवन है।" "आपने पवन का रूप देखा है ?" "नहीं ! हम पवन का रूप देख नहीं सकते ।” "हे आयुष्मन ! गंध गुण वाला पुद्गल है ?” "हाँ, है।" "हे आयुष्मन ! गंध गुण वाला पुद्गल तुमने देखा है ?" "इसके लिए हम समर्थ नहीं हैं।" । "हे आयुष्मन ! अरणि-काष्ठ के साथ अग्नि है ?'' १- अन्यतीर्थिकों के पूरे नाम भगवतीसूत्र सटीक श० ७ उ०१० पत्र ५६२ में इस प्रकार दिये हैं १-कालोदायो, शैलीदायी, सेवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्यपालक, शैलोपालक, शंखपालक, सुहस्ती, गृहपति । २-सम्पन्न, वैभवशाली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy