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तीर्थङ्कर महावीर स्पष्टीकरण किया। उसके बाद गौतम स्वामी ने पूछा--"हे भगवन् ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना का आराधक कितने भवों के बाद सिद्ध होता है ?" ___ भगवान्--"हे गौतम ! कितने ही जीव उसी भव में सिद्ध होते हैं, कितने दो भवों में सिद्ध होते हैं और कितने जीव कल्पोपपन्न (बारहवें देवलोकवासी देव अथवा कल्पातीत' (ग्रैवेयक और अनुत्तरविमान के वासी देव ) देवलोक में उत्पन्न होते हैं।"
गौतम स्वामी-"उत्कृष्ट दर्शनाराधना का आराधी कितने भावों में सिद्ध होता है ?"
भगवान्–“इसका उत्तर भी पूर्ववत् जान लेना चाहिए।"
गौतम स्वामी-"चरित्राधारना का आराधी कितने भवों में सिद्ध होता है ?"
भगवान्-"इसका उत्तर भी पूर्ववत् जान लेना चाहिए; परन्तु कितने ही जीव कल्पातीत देवों में उत्पन्न होते हैं ।”
गौतम स्वामी- "हे भगवन् ! ज्ञान की मध्यम आराधना का आराधी कितने भवों को ग्रहण करने के पश्चात् सिद्ध होता है।"
भगवान्-“वह दो भव ग्रहण करने के पश्चात् सिद्ध होता है । पर, तीसरा भव अतिक्रम करेगा ही नहीं ।” ___ भगवान् ने इसी प्रकार मध्यम दर्शनाराधक और ज्ञानाराधक के बारे में भी अपना मत प्रकट किया ।
१ वैमानिकाः ।१७. कल्पोपपन्ना : कल्पातीताश्च ।१८। उपर्युपरि ।१६। सौधर्मेशान सानत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्मलोकलान्तक महा शुक्र सहस्रारेष्वानत प्राणतयोरारणाच्युत योर्नवसु-ग्रैवेयकेषु विजय वैजयन्त जयन्ताऽपराजितेषु सर्वार्थसिर्वार्थसिद्धे 'च ॥२०॥ तत्त्वार्थसूत्र ४-१ सटीक सिद्धसेनगणि की टीका सहित भाग १, पष्ठ २६६-२६१
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