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आराधना
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"तीसरे प्रकार का पुरुष शील वाला भी है और श्रुत वाला भी है। वह पुरुष (पाप से निवृत) उपरत है। वह धर्म का जानने वाला है। उस पुरुष को मैं सर्वाराधक कहता हूँ।
"हे गौतम ! चौथे प्रकार का पुरुष श्रुत और शील दोनों से रहित होता है । वह तो पाप से उपरत नहीं होता है और धर्म से भी परिचित होता है । उनको मैं सर्वविरोधक कहता हूँ।"
आराधना इसके बाद गौतम स्वामी ने पूछा- "हे भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की कही गयी है ?"
भगवान्–“आराधना तीन प्रकार की कही गयी है--१ ज्ञानाराधना २ दर्शनाराधना ३ चरित्राराधना।"
गौतम स्वामी-"ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ?"
भगवान्--"ज्ञानाराधना तीन प्रकार की है १ उत्कृष्ट २ मध्यम और ३ जघन्य ।”
गौतम स्वामी--"दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ?" भगवान्--"यह भी तीन प्रकार की है।"
गौतम स्वामी--"जिस जीव को उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसे क्या उत्कृष्ट दर्शनाराधना भी होती है ? जिस जीव को उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है उसे क्या उत्कृष्ट ज्ञानाराधना भी होती है ?"
भगवान्---"हे गौतम! जिस जीव को उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसे उत्कृष्ट अथवा मध्यम दर्शनाराधना होती है और जिसे उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है उसे उत्कृष्ट अथवा जघन्य ज्ञानाराधना होती है।"
इसके बाद भगवान् ने इनके सम्बन्ध में और भी विस्तृत रूप में
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