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________________ ३३-वाँ वर्षावास चार प्रकार के पुरुष वर्षावास के बाद भगवान् ने मगध-भूमि की ओर विहार किया और राजगृह के गुणशिलक-नामक चैत्य में ठहरे । यहाँ अन्यतीर्थों के मत के सम्बन्ध में प्रश्न पूछते हुए गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा-'हे भगवन् कुछ अन्य तीर्थक कहते हैं (१) शील श्रेय है । कुछ कहते हैं श्रुत श्रेय है । और, कुछ कहते हैं [शील निरपेक्ष ] श्रुत श्रेय है अथवा [श्रुत निरपेक्ष ] शील श्रेय है ? हे भगवन् ! यह कैसे ?” भगवान्–“गौतम ! अन्यतीर्थिकों का कहना मिथ्या है । इस सम्बन्ध में मेरा कथन इस प्रकार है । पुरुष चार प्रकार के होते हैं । (१) पुरुष जो शीलसम्पन्न है; पर श्रुतसम्पन्न नही है (२) पुरुष जो श्रुतसम्पन्न है; पर शीलसम्पन्न नहीं है (३) पुरुष जो शीलसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है (४) पुरुष जो न शीलसम्पन्न है और न श्रुतसम्पन्न है। "प्रथम प्रकार का पुरुष जो शीलवान है पर श्रुतवान नहीं है, वह उपरत (पापादि से निवृत्त ) है । पर, वह धर्म नहीं जानता । हे गौतम ! उस पुरुष को मैं देशाराधक (धर्म के अंश का आराधक) कहता हूँ। __ "दूसरे प्रकार का पुरुष श्रुत वाला है, पर शील वाला नहीं है। वह पुरुष अनुपरत ( पाप से अनिवृत) होता हुआ भी धर्म को जानता है । हे गौतम ! उस पुरुष को मैं देशविरोधक कहता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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