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गांगेय की शंका समाधान
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भगवान् - "केवल ज्ञानी का ज्ञान निरावरण होता है । वह सभी वस्तुओं को पूर्णरूप से जानता है ।"
गांगेय – “हे भगवन् ! नैरयिक नरक में स्वयं उत्पन्न होता है या अस्वयं ?"
भगवान्–“नरक में नैरयिक स्वयं उत्पन्न होता है, अस्वयं नहीं ।" गांगेय – “ऐसा आप किस कारण कह रहे हैं ?"
भगवान् — “हे गांगेय ! कर्म के उदय से कर्म के गुरुपने से, कर्म के भारीपने से, कर्म के अत्यन्त भारीपने से, अशुभ कर्म के उदय से, अशुभ कर्मों के विपाक से, और अशुभ कर्मों के फल- विपाक से नैरयिक नरक में उत्पन्न होता है । नैरयिक नरक में अस्वयं उत्पन्न नहीं होता ।” इसी प्रकार अन्यों के विषय में भी भगवान् ने सूचनाएं दीं । उसके बाद भगवान् को सर्वज्ञ रूप में स्वीकार करके गांगेय ने भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा की और वंदन किया तथा पार्श्वनाथ भगवान् के चार महाव्रत के स्थान पर पंचमहाव्रत स्वीकार कर लिया ।' उसके बाद भगवान् वैशाली आये और अपना चातुर्मास भगवान् ने वैशाली में बिताया ।
१ भगवतीसूत्र सटीक शतक ६, उदेशा ५, पत्र ८०४ -८३७ ।
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