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________________ गांगेय की शंकाओंका समाधान २३६ गांगेय - "हे भगवन् ? नैरयिक सान्तर चवता है कि निरन्तर च्चवता है ?' भगवान्-'"हे गांगेय ? नैरयिक सान्तर च्यवता है और निरन्तर यवत है । इसी प्रमाण नितकुमार तक जान लेना चाहिए।" गांगेय- "हे भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव सान्तर च्यवते हैं ?" भगवान् --" हे गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीव निरन्तर च्यवता है और वह सान्तर नहीं च्यवता है । इसी रूप में वनस्पतिकायिक जीव-सान्तर नहीं च्यवता निरन्तर च्यवता है।" गांगेय-- "हे भगवान् ! द्विइन्द्रिय जीवसान्तर च्यवते हैं या निरन्तर ?" भगवान् -" हे गांगेय ! द्विइन्द्रिय जीव सान्तर भी च्यवता है और निरन्तर भी । इसी प्रकार यावत् वानव्यन्तर तक जानना चाहिए।" गांगेय- "हे भगवन् ! ज्योतिष्क देव सान्तर च्यवते हैं या निरन्तर?" भगवान्-"ज्योतिष्क देव सान्तर भी च्यवते हैं और निरन्तर थी। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक समझ लेनी चाहिए।" गांगेय "हे भगवन् ! प्रवेशनक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? भगवान्-" हे गांगेय ! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है। वे चार ये हैं.-१ नैरयिक' प्रवेशनक २--तिर्यंचयोनिक प्रवेशनक ३--- मनुष्य प्रवेशनक ४-देव प्रवेशनक । उसके बाद भगवान् ने विभिन्न नैर्गयकों के प्रवेशनक के सम्बन्ध में विस्तृत सूचनाएँ ही । गांगेय—"हे भगवन् ! तिर्यंचयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? भगवान्-- "हे गांगेय ! पांच प्रकार का कहा गया है-एकेन्द्रिय योनिक प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिथंच योनिक प्रवेशनक !” उसके बाद गांगेय के प्रश्न पर भगवान् ने उसके सम्बन्ध में विशेष सूचनाएँ दी । १-नरक बताये गये हैं-" १-रयणप्पभा २ सकरप्पभा ३ बालुकम्पमा ४ पंकप्पभा, ५ धूमप्पभा, ६ तमप्पभा, ७ तमतम्पमा-प्रज्ञापना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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