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३२ - वाँ वर्षावास गांगेय की शंकाओं का समाधान
भगवान् वाणिज्यग्राम के निकट स्थिति द्विपलाश - चैत्य में ठहरे हुए थे । भगवान् का धर्मोपदेश हुआ ।
उस समय पार्श्वसंतानीय साधु गांगेय ने द्विपलाश - चैत्य में भगवान् से थोड़ी दूर पर खड़े होकर पूछा - "हे भगवन् ? नैरयिक सान्तर' उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?"
भगवान् — “हे गांगेय ? नैरयिकसान्तर भी उत्पन्न होता है और निरन्तर भी ?"
गांगेय – “हे भगवन् ? असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?"
भगवान् - "गांगेय ! असुरकुमार सान्तर भी निरन्तर भी । इसी प्रकार स्तनितकुमार आदि के लेना चाहिए ।"
गांगेय - " भगवन् ? पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?"
भगवान् -- "हे गांगेय ? पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते । वे निरन्तर उत्पन्न होते हैं । इसी रूप में यावत् वनस्पतिकायिक जीव तक जान लेना चाहिए । द्वि इंद्रिय जीव से लेकर वैमानिकों और नैरयिकों तक सभी के साथ इसी प्रकार समझना चाहिए ।"
उत्पन्न होते हैं और
सम्बन्ध में भी जान
१ - जिसकी उत्पत्ति में समयासि काल काल का अंतर व्यवधान हो वह सान्तर कहलाता है ।
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