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अम्बड परिव्राजक का अन्तिम जीवन २३७ इस प्रकार करके संलेखना में तथा शरीर को कृश करने में प्रीति से युक्त वे सबके सब भक्त पान का प्रत्याख्यान करके वृक्ष के समान निःचेष्ट होकर मरण की इच्छा न करते हुए स्थित हो गये। ___ इसके बाद उन समस्त परिव्राजको ने चारों प्रकार के आहार को अनशन द्वारा छेद कर, छेद करने के बाद अतिचारों की आलोचना की
और फिर उनसे वे परावृत्त हुए। और, काल के अवसर पर काल करके ब्रह्मलोक-कल्प में देव-रूप में उत्पन्न हुए । वहाँ उनका आयुध्य १० सागरोपम-प्रमाण है।
ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् वैशाली आये और अपना वर्षावास भगवान् ने वैशाली में बिताया।
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