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कुछ अन्य सदाचारी परिव्राजक २२९ तएणं समगं भगवं महावी रे अरहा जाये, जिगो केवली सबन्नू सव दरिसी.......
उपासकदशांग वाले प्रकरण पर हम मुख्य श्रावकों वाले प्रसंग में विचार करेंगे।
इसका स्पष्टीकरण 'विचार-रत्नाकर' में कीर्तिविजय उपाध्याय ने इस प्रकार किया है :
पुनरपि जिन प्रतिमारिपु प्रतिबोधाय अभ्मडेन यथा अन्य तीर्थिकदेवान्यतार्थिक. परिगृहीतहत्प्रतिमा निषेध पूर्वक मह. स्प्रतिमावन्दनाद्यङ्गीकृतं, तथा लिख्यते
'अम्मडस्स णो कप्पइ अन्न उत्थिया वा अन्नउत्थियदेवयाणि चा अन्न उत्थियपरिग्गहियाणि अरिहंत चेइयाणि वा वंदित्तए चा नमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तर वा जन्नत्य अरिहंते वा अरिहंतवेदयाणि वा इति वृत्तिर्यथा—'अन्न उत्थिए व' त्ति अन्य यूथिका-आर्हतसङ्घापेक्षयाऽन्ये शाक्यादयः 'चेइयाई' ति, अर्हच्चैत्यानि-जिन प्रतिमा इत्यर्थः। 'णन्नत्थ अरिहंतेहिं वं' त्ति न कल्पते इह योऽयं नेति निषेधः सोऽन्यत्राहद्भ्यः अहतो वर्जयित्वेत्यर्थः”
-पत्र ८२-१, ८२-२ कुछ अन्य सदाचारी परिव्राजक औपपातिकसूत्र में ही कुछ अन्य सदाचारी परिव्राजकों का उल्लेख आया है। उनमें ८ परिव्राजक ब्राह्मण-वंश के थे-१ कृष्ण, २ करकंड, ३ अंबड, ४ पारासर, ५ कृष्ण, ६ द्वैपायन, ७ देवगुप्त और ८ नारद । और ८ परिव्राजक क्षत्रिय-वंश के थे-१ शीलधी, २ शशिधर, ३ नग्नजित, ४ भग्नजि ५ विदेह, ६ राजा, ७ राम और ८ बल ।
४-कल्पसूत्र सुशोधिका टीका सहित, सूत्र १२१, पत्र ३२१
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