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'चैत्य' शब्द पर विचार
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यहाँ 'श्रमणं' का अर्थ न समझ पाने से साधु अर्थ बैठाने का प्रयास किया गया है ।
यहाँ 'श्रमण' शब्द साधु के लिए नहीं भगवान् महावीर के लिए प्रयुक्त हुआ है । हम इस सम्बन्ध में कुछ प्रमाण दे रहे हैं:
( १ ) कल्पसूत्र में भगवान् के ३ नामों के उल्लेख हैं । ( अ ) वर्द्धमान ( आ ) श्रमण ( ३ ) महावीर । नाम पड़ने का कारण बताते हुए लिखा है:
सहसमुइयाणे समरो'
इसकी टीका इस प्रकार की गयी है:
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सहस मुदिता - सहभाविनी तपः करणादिशक्तिः तथा श्रमण इति द्वितीय नाम
( २ ) आचारांग में भी इसी प्रकार का पाठ है । सहसंमदए समणे'
( ३ ) ऐसा उल्लेख आवश्यकचूर्णि में भी है।
( ४ ) सूत्रकृतांग में भी श्रमण शब्द की टीका करते हुए टीकाकार ने 'श्रमणो' भवतीर्थंकरः लिखा है- अर्थात् आर्द्रककुमार के तीर्थंकर भगवान् महावीर
(५) योगशास्त्र की टीका में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा हैश्रमणो देवार्य इति च जनपदेन'
१- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र २५४
२ - वही, पत्र २५३
३- आचारांगसूत्र सटीक २, ३, २३, सूत्र ४००, पत्र ३८६-१
और, 'श्रमण'
४ - आवश्यक चूरिंग, पूर्वार्द्ध, पत्र २४५
५- सूत्रकृतांग २, ६, १५- पत्र १४४ - १, १४५ - १
६ - योगशास्त्र, स्वोपज्ञ टीका सहित, पत्र १-२
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