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________________ 'चैत्य' शब्द पर विचार २२७ यहाँ 'श्रमणं' का अर्थ न समझ पाने से साधु अर्थ बैठाने का प्रयास किया गया है । यहाँ 'श्रमण' शब्द साधु के लिए नहीं भगवान् महावीर के लिए प्रयुक्त हुआ है । हम इस सम्बन्ध में कुछ प्रमाण दे रहे हैं: ( १ ) कल्पसूत्र में भगवान् के ३ नामों के उल्लेख हैं । ( अ ) वर्द्धमान ( आ ) श्रमण ( ३ ) महावीर । नाम पड़ने का कारण बताते हुए लिखा है: सहसमुइयाणे समरो' इसकी टीका इस प्रकार की गयी है: ● सहस मुदिता - सहभाविनी तपः करणादिशक्तिः तथा श्रमण इति द्वितीय नाम ( २ ) आचारांग में भी इसी प्रकार का पाठ है । सहसंमदए समणे' ( ३ ) ऐसा उल्लेख आवश्यकचूर्णि में भी है। ( ४ ) सूत्रकृतांग में भी श्रमण शब्द की टीका करते हुए टीकाकार ने 'श्रमणो' भवतीर्थंकरः लिखा है- अर्थात् आर्द्रककुमार के तीर्थंकर भगवान् महावीर (५) योगशास्त्र की टीका में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा हैश्रमणो देवार्य इति च जनपदेन' १- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र २५४ २ - वही, पत्र २५३ ३- आचारांगसूत्र सटीक २, ३, २३, सूत्र ४००, पत्र ३८६-१ और, 'श्रमण' ४ - आवश्यक चूरिंग, पूर्वार्द्ध, पत्र २४५ ५- सूत्रकृतांग २, ६, १५- पत्र १४४ - १, १४५ - १ ६ - योगशास्त्र, स्वोपज्ञ टीका सहित, पत्र १-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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