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तीर्थङ्कर महावीर “उनमें जो द्रव्यमास है वह भी दो प्रकार का है -१ अर्थमास और धान्य मास ।
"अर्थमास दो प्रकार के–१ सुवर्णमास २ रौप्यमास । ये श्रमणनिग्रंथों को अभक्ष्य हैं।
"जो धान्यमास है, वह दो प्रकार का-१ शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत । आगे सरिसव के समान पूरा अर्थ ले लेना चाहिए ।"
सोमिल-"कुलत्था भक्ष्य है या अभश्य ?” भगवान्-"सोमिट ? कुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी ?” सोमिल-"वह भक्ष्य और अभक्ष्य दोनों कैसे हैं ?” ।
भगवान--"हे सोमित्र ? ब्राह्मण-शास्त्रों में कुलत्था दो प्रकार का है-स्त्री-कुलत्था (कुलीन स्त्री) और धान्य-कुलत्था । स्त्री-कुलस्था तीन प्रकार की हैं -१ कुलकन्यका, २ कुलवधु और ३ कुलमाता । ये तीनों श्रमण-निर्गन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। और, जो धान्य-कुलत्थ है, उसके सम्बन्ध में सरिसव के समान जानना चाहिए।"
सोमिल-"आप एक हैं या दो हैं ? अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं कि अनेक भूत, वर्तमान और भावी परिणाम के योग्य हैं ?"
भगवान्-"मैं एक भी हूँ और दो भी हूँ। अक्षय-अव्यय-अवस्थित हूँ औरभूत-वर्तमान-भविष्य रूपधारी भी हूँ।"
सोमिल-"यह आप क्यों कहते हैं ?" । भगवान्-“हे सोमिल ! द्रव्यरूप में मैं एक हूँ। पर ज्ञानरूप और दशनरूप में दो भी हूँ।
प्रदेश ( आत्म-प्रदेश ) रूप से अक्षय हूँ, अव्यय हूँ और अवस्थित हूँ। पर, उपयोग की दृष्टि से भूत-वर्तमान और भावी परिणाम के योग्य हूँ।" __ प्रतिबोध पाकर सोमिल ने भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और बोला-"अनेक राजेश्वरों आदि ने जिस प्रकार साधु धर्म
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