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________________ सोमिल का श्रावक होना २१७ "जो शस्त्र-परिणत है वह भी दो प्रकार का है—१ एषणीय, २ अनेषणीय ! इनमें जो अनेषणीय है, वह निर्गन्थों को अभक्ष्य है। "एषणीय-सरिसव दो प्रकार का कहा गया है-१ याचित और २ अयाचित । जो अयाचित सरिसव है, वह निगन्थों को अभक्ष्य है। "जो याचित सरिसव है वह दो प्रकार है-१ लब्ध और २ अलब्ध । इनमें जो अलब्ध ( न मिला हुआ ) है, वह निर्गन्थों को अभक्ष्य है। जो लब्ध ( मिला हुआ हो) है वह श्रमण-निर्गन्थों का भक्ष्य है । इस कारण हे सोमिल सरिसव हमारे लिए भक्ष्य भी और अभक्ष्य भी।" सोमिल-“हे भगवान् ! मास' भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? भगवान्-“हे सोमिल ? मास हमारे लिए भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है। सोमिल-"हे भगवान् ! आपने भक्ष्य और अभक्ष्य दोनों क्यों कहा?" भगवान्-“हे सोमिल ? तुम्हारे ब्राह्मण-ग्रन्थों में मास दो प्रकार के हैं.-१ द्रव्यमास, २ कालमास । "इनमें जो कालमास श्रावण से लेकर आषाढ़ तक १२ मास-१ श्रावण, २ भाद्र, ३ आश्विन, ४ कार्तिक, ५ मार्गशीर्ष, ६ पोष, ७ माघ, ८ फाल्गुन, ९ चैत्र, १० वैशाख, ११ ज्येष्ठ, १२ आषाढ़-ये श्रावणनिर्गन्थों को अभक्ष्य हैं। १-महावीर का ( प्रथम संस्करण ) पृष्ठ ३६६ में गोपालदास पीताभाई पटेल ने 'मास' का एक अर्थ मांस किया हैं। ऐसा अर्थ मूल पाठ में कहीं नहीं लगता। उनकी ही नकल करके बेसमझे और बिना मूल पाठ देखे रतिलाल मफाभाई शाह ने भगवान् महावीर ने मांसाहार' पृष्ट ३३-३४ में तद्रूप ही लिख डाला। पटेल की महावीर-कथा १६४१ में निकली । उनका भगवतीसार १६३८ में छप गया था। उसके पृष्ठ २४४ पर उन्होंने ठीक अर्थ किया है। अगर उन्होंने स्वयं अपनी पुस्तक देखी होती तो ऐसी गल्ती न करते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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