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तीर्थङ्कर महावीर कषाय व्युच्छिन्न हो गये हैं और उदय में नहीं आते हैं। यह नोइन्द्रिययापनीय है।"
सोमिल-“हे भगवन् ! आपका अव्याबाध क्या है ?"
भगवान्–“हे सोमिल ! बात, पित्त, कफ और सन्निपात जन्य अनेक प्रकार के शरीर-सम्बन्धी दोष हमारे उपशान्त हो गये हैं और उदय में नहीं आते । यह अव्याबाध है ।”
सोमिल—"हे भगवान् ! प्रासुक विहार क्या है ?”
भगवान्- "हे सोमिल ! आराम, उद्यान, देवकुल, सभा, प्याऊ, स्त्री, पशु और नपुंसक-रहित बस्तियों में निर्दोष और एक एषगीय पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक प्राप्त करके मैं विहरता हूं। यह प्रासुक विहार है।"
सोमिल-"सरिसब आपको भक्ष्य है या अमक्ष्य ?" भगवान्-"सरिसब हमारे लिए भश्य भी है अभक्ष्य भी है ।
सोमिल- "हे भगवन् ! यह आप किस कारण कहते हैं कि, सरिसव भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है ?"
भगवान्-"सोमिल ! ब्राह्मण नय-शास्त्र-मैं सरिसव दो प्रकार का कहा गया है। एक तो मित्र-सरिसव (समानवयस्क) और दूसरा धान्य-सरिसव ।
"मित्र-सरिसव तीन प्रकार के होते हैं-१सहजात ( साथ में जन्मा हुआ), २ सहवर्द्धित ( साथ मैं बड़ा हुआ) और ३ सहप्रांशुक्रीडित ( साथ में धूल में खेला हुआ)। ये तीन प्रकार के सरिसव श्रमण-निग्रन्थों को अभक्ष्य हैं।
"जो धान्य-सरिसव है वह दो प्रकार का कहा गया है-१ शस्त्र-परिणत और २ अशस्त्र-परिणत । ., "उनमें अशस्त्र-परिणत श्रमणों को अभक्ष्य है।
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