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सोमिल का श्रावक होना
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ग्रहण किया है, उस रूप में मैं साधु-धर्म ग्रहण कर सकने में असमर्थ हूँ । पर, श्रावकधर्म ग्रहण करना चाहता हूँ ।"
और, श्रावक-धर्म स्वीकार करके वह अपने घर लौटा ।
उसके चले जाने पर गौतम स्वामी ने पूछा - "क्या यह सोमिल ब्राह्मण देवानुप्रिय के पास अनगारपना स्वीकार करने में समर्थ है ?" इस प्रश्न पर भगवान् ने शंख श्रावक के समान वक्तव्यता दे देते हुए कहा कि अंत में सोमिल सर्व दुःखों का अन्त करके मोक्ष पायेगा ।' भगवान् ने अपना वर्षावास वाणिज्यग्राम में बिताया ।
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भगवतीसूत्र सटीक, शतक १८१, उद्देशा १०, पत्र १३६६ - १४०१
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