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________________ २१२ तीर्थकर महावीर वाए, हल चलावे, पत्थर तोड़ाए, खान खोदाये इत्यादि स्फोटिक कर्म हैं। (ये ५ कर्म हैं । अब ५ वाणिज्य का उल्लेख करते हैं) ६-"दंतवाणिज्य-हाथी-दाँत तथा अन्य त्रस जीवों के शरीर के अवयव का व्यापार करना दंतवाणिज्य है। ७-"लक्खवाणिज्य-धव, नील, सजीखार आदि क्षार, मैनसिल, सोहागा तथा लाख आदि का व्यापार करना लक्खवाणिज्य है । ८-"रसवाणिज्य-मद्य, मांस, मक्खन, ची, मजा, दूध, दही, घी, तेल आदि का व्यापार रसवाणिज्य हैं। ९-"केशवाणिज्य-यहाँ केश शब्द से केश वाले जीव समझना चाहिए । दास-दासी, गाय, घोड़ा, ऊँट, बकरा आदि का व्यापार केशवाणिज्य है। १०-"विषवाणिज्य-सभी प्रकार के विष तथा हिंसा के साधनरूप शस्त्रास्त्र का व्यापार विषवाणिज्य है । (अब ५ सामान्य कार्य कहते हैं ) (११) 'यन्त्रपीडन-कर्म-तिल, सरसों इक्षु आदि पेर कर बेचना यन्त्रपीडन-कर्म है। (१२) "निलोछन-कर्म-पशुओं को खसी करना, उन्हें दागना, तथा अन्य निर्दयपने के काम निर्लोछन-कर्म है । (१३) "दावाग्नि-कर्म-जंगल ग्राम आदि मैं आग लगाना । (१४) "शोषण-कर्म-तालाब, ह्रद, आदि से पानी निकाल कर उनको सुखाना। (१५) "असती-पोषण-कुतूहल के लिए कुत्ते, बिल्ली, हिंसक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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