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गौतम स्वामी के प्रश्नों का उत्तर २११ पालक, ११ अयं पुल, १२ कातर ये बारह आजीविकों के उपासक हैं । उनका देव अर्हत् गोशालक है। माता-पिता की सेवा करने वाले ये पाँच प्रकार का फल नहीं खाते-१ उदुम्बर ( गूलर ), २ वट, ३ बेर, ४ अंजीर, ५ पीपल का फल ।
"वे प्याज, लहसुन, और कंदमूल के त्यागी हैं । वे अनिलांछित (खसी न किया हुआ ), जिसकी नाक न बिंधी हो, ऐसे बैल और त्रस प्राणि की हिंसा-विवर्जित व्यापार से आजीविका चलाते हैं ।
"गोशालक के ये श्रावक जब इस प्रकार के धर्म के अभिलाषी हैं तब जो श्रमणोपासक हैं उनके सम्बंध में क्या कहें ?
"निम्नलिखित १५ कर्मादान न वे करते हैं, न कराते हैं और न करने वाले को अनुमति देते हैं:
१-"इंगालकर्म-कोयला बना कर बेचना, ईंट बना कर बेचना, भाँडे-खिलौने पका करके बेचना, लोहार का काम, सोनार का काम, चाँगड़ी बनाने का काम, कलाल का व्यवसाय, भड़भूजे का काम, हलवाई का काम, धातु गलाने का काम इत्यादि व्यापार जो अग्नि द्वारा होते हैं, उनको इङ्गालकर्म कहते हैं।
२-"वनकर्म-काय हुआ तथा बिना काटा हुआ वन बेचना, बगीचे का फल-पत्र बेचना, फल-फूल-कन्दमूल-तृण-काष्ठ-लकड़ी-वंशादि बेचना, हरी वनस्पति बेचना ।
३-"साड़ीकर्म-गाड़ी, बल, सवारी का रथ, नाव, जहाज, चनाना और बेचना तथा हल, दंताल, चरखा, धानी के अंग, चक्की, ऊखल, मूसल आदि बनाना साड़ी अथवा शकटकर्म है।
४-"भाड़ीकर्म-गाड़ी, बैल, ऊँट, भैंस, गधा, खच्चर, घोड़ा, नाव, रथ आदि से दूसरों का बोझ ढोना और भाड़े से आजीविका चलाना ।
५-“फोड़ीकर्म-आजीविका के लिए कप, बावड़ी, तालाब खोद
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