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________________ तीर्थङ्कर महावीर ४०-"अथवा वचन और काया से करने वालेको अनुमति नहीं देता। ४१--"एकविध-एकविध प्रतिक्रमता मन से करता नहीं । ४२---"अथवा वचन से करता नहीं । ४३-"अथवा काया से करता नहीं । ४४---"अथवा मन से कराता नहीं । ४५-"अथवा वचन से कराता नहीं। ४६-"अथवा काया से कराता नहीं । ४७--"अथवा मन से करने वाले को अनुमति नहीं देता । ४८--"अथवा वचन से करने वाले को अनुमति नहीं देता। ४९--"अथवा काया से करने वाले को अनुमति नहीं देता। इसी प्रकार के ४९ भागे संवर करने वाले के भी हैं । इसी प्रकार के ४९ भाँगे अनागत काल के प्रत्याख्यान के भी हैं । अतः कुल १४७ भाँगे हुए। "इसी प्रकार स्थूलमृपावाद, स्थूलअदत्तादान, स्थूल मैथुन', स्थूल परिग्रह सबके १४७-१४७ भोंगे समझ लेना चाहिए। "इस अनुसार जो व्रत पालते हैं, वे ही श्रावक कहे जाते हैं। जैसे श्रमगोपासक के लक्षण कहे, वैसे ही लक्षण वाले आजीवक पंथ के श्रमणोपासक नहीं होते। "आजीवकों के सिद्धान्तों का यह अर्थ है-"हर एक जीव अक्षीणपरिभोगी-सचित्ताहारी हैं। इस कारण उनको हन कर ( तलवार आदि से), छेद कर ( शूल आदि से ), भेद कर ( पंख आदि काट कर), लोप करके (चमड़ा उतारवा कर ) और विलोप करके और विनाश करके खाते हैं । पर आजीवक मत में भी--१ ताल, २ ताल प्रलंब, ३ उद्विध, ४ संविध, ५ अवविध, ६ उदय, ७ नामोदय, ८ नर्मोदय, ९ अनुपालक १० शंख १ भाँगों का उल्लेख धर्मसंग्रह भाग १ ( गुजराती-अनुवाद सहित ) में पष्ठ १५४ से १७० तक है । भगवती के भाँगों का उसमें पष्ठ १६० पर उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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