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२६ - वाँ वर्षावास
गौतम स्वामी के प्रश्नों का उत्तर
वर्षाकाल समाप्त होने के बाद, भगवान् ने विदेह - भूमि से राजगृह की ओर विहार किया और राजगृह में गुणशिलक - चैत्य में ठहरे |
यहाँ एक दिन गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा - " हे भगवन् ! आजीविकों' के स्थविरों ने भगवान् से ऐसा प्रश्न किया कि श्रमण के उपाश्रय में सामायिक व्रत अंगीकार करके बैठे हुए श्रावक के भंडोपकरण कोई पुरुष ले जावे फिर सामायिक पूर्ण होने पर पीछे उस भंडोपकरण को वह खोजे तो क्या वह अपने भंडोपकरण को खोजता है, या दूसरे के भंडोपकरण को खोजता है ?
रण
भगवान् - " हे गौतम ! वह सामायिक व्रत वाला अपना मंडोपकर खोजता है; अन्य का भंडोपकरण नहीं खोजता |
गौतम स्वामी - " शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, ( रागादि विरतय: ) प्रत्याख्यान और पौषधोपवास में श्रावक का भांड क्या अभांड नहीं होता ?
भगवान् - " हे गौतम ! वह अभांड हो जाता है । "
१ औपपातिकसूत्र सटीक, सूत्र ४१, पत्र १६६ में निम्नलिखित ७ प्रकार के श्राजीवकों का उल्लेख है -
१ दुघरंतरिया २ तिघरंतरिया, ३ सत्तघरंतरिया, ४ उप्पल बेटिया, ५ घर समुद्राणिर या ६ - विज्जु अंतरिया ७ उट्टिया समणा
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