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भगवान् मोक -नगरी में
भगवान् मोका-नगरी में
वहाँ से विहार कर भगवान् मोका-नामक नगरी में पधारे । वहाँ नन्दन नामक चैत्य वर्ष था । भगवान् उसी चैत्य में ठहरे । यहाँ भगवान् के दूसरे शिष्य श्रग्निभूति ने भगवान् से पूछा - "हे भगवन् ! असुरराज चमर कितनी ऋद्धि, कान्ति, बल, कीर्ति, सुख, प्रभाव तथा विकुर्वण-शक्ति वाला है ?”
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इस पर भगवान् ने उत्तर दिया- "हे गौतम ! वह ३४ लाख भवन वासी, ६४ हजार सामानिक देव, ३३ त्रायस्त्रिंशक देव, ४ लोकपाल, ५ पटरानी, ७ सेना तथा २लाख ५६ हजार आत्मरक्षकों और अन्य नगर वासी देवों के ऊपर सत्ताधीश के रूप में भोग भोगता हुआ विचरता हैं । वैक्रिय शरीर करने के लिए वह विशेष प्रयत्न करता है ।
वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप तो क्या पर इस तिरक्षे लोक मैं असंख्य द्वीपों और समुद्रों तक स्थल असुरकुमार देव और देवियों से भर जाये उतना रूप विकुर्वित कर सकता है । "
अनगार ने भगवान्
फिर, वायुभूति - नामक असुरराज बलि के सम्बंध में पूछा । भगवान् ने उन्हें बताया कि बलिको भवनवासी ३० लाख, सामानिक ६० हजार हैं और शेष सत्र चमर के सदृश्य ही है । अग्निभूति ने नागराज के सम्बंध में पूछा तो भगवान् ने बताया कि, उसे भवनवासी ४४ लाख, सामानिक ६ हजार, त्रायस्त्रिंशक ३३, लोकपाल ४, पटरानी ६, आत्मरक्षक २४ हजार हैं और शेष पूर्ववत् ही है ।
इसी प्रकार स्तनितकुमार, व्यन्तरदेव तथा ज्योतिष्कों के सम्बंध में किये गये प्रश्नों के भी उत्तर भगवान् ने दिये और बताया कि व्यन्तरों तथा ज्योतिष्कों के त्रायस्त्रिंश तथा लोकपाल नहीं होते । उन्हें ४ हजार
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