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तीर्थङ्कर महावीर हैं, वह स्थान निर्वाण, अव्याबाध, सिद्धि, लोकाग्र, ओम, शिव और अनाबाध इन नामों से विख्यात है ।
"हे मुने ! वह स्थान शाश्वत वासरूप है, लोकाग्र के अग्रभाग में स्थित है, परन्तु दुरारोह है तथा जिसको प्राप्त करके भव-परम्परा का अंत करने वाले मुनिजन सोच नहीं करते ।”
केशीकुमार—'हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा साधु है । आपने मेरे संशयों को नष्ट कर दिया । अतः हे संशयातीत ! हे सर्व सूत्र के पारगामी ! आपको नमस्कार है। __ संशयों के दूर हो जाने पर केशीकुमार ने गौतम स्वामी की वन्दना करके पंच महाव्रत रूप धर्म को भाव से ग्रहण किया ।
उन दोनों मुनियों के संवाद को सुनकर पूरी परिपद् संमार्ग में प्रवृत्त हुई। .
शिव-राजर्षि की दीक्षा भगवान् की हस्तिनापुर की इसी यात्रा में शिवराजर्षि को प्रतिबोध हुआ और उसने दीक्षा ग्रहण की । उसका सविस्तार वर्णन हमने राजाओं वाले प्रकरण में दिया है।
पोट्ठिल की दीक्षा भगवान् की इसी यात्रा में पोहिल ने भी साधु-व्रत ग्रहण किया । उसका जन्म हस्तिनापुर में हुआ था। उसकी माता का नाम भद्रा था। इसे ३२ पत्नियाँ थीं । वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर अंत में एक मास का अनशन कर उसने अणुत्तर-विमान में देवगति प्राप्त की।
१- उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन २३ पत्र २८५-१-३०२-१ २-अणुत्तरोववाइय ( अंतगडगुत्तरोववाइय-मोदी-सम्पादित ) पृष्ठ ७० ८३
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