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________________ १६६ तीर्थङ्कर महावीर को आते हुए देखकर, केशीकुमार श्रमण ने भक्ति-बहुमान पुरस्सर उनका स्वागत किया। उस वन में जो प्रासुक निर्दोष पलाल, कुश और तृणादि' थे, वे गौतम स्वामी को बैठने के लिए शीघ्र ही प्रस्तुत कर दिये गये।। उस समय वहाँ बहुत-से पाखंडी और कुतूहली लोग भी उस वन में एकत्र हो गये। केशीकुमार ने गौतम-मुनि से कहा- "हे महाभाग्य ! मैं तुम से पूछता हूँ।" और, गौतम स्वामी की अनुमति मिल जाने पर केशी मुनि ने पूछा--"वर्द्धमान स्वामी ने पाँच शिक्षा रूप धर्म का कथन किया है और महामुनि पार्श्वनाथ ने चातुर्यामधर्म का प्रतिपादन किया है। हे मेधाविन् ! एक कार्य में प्रवृत्त होने वालों के धर्म में विशेष भेद होने में कारण क्या है ? और, धर्म के दो भेद हो जाने पर आपको संशय क्यों नहीं होता ? केशीकुमार के प्रश्न को सुनकर गौतम स्वामी ने कहा-"जीवादि तत्वों का विनिश्चय जिसमें किया जाता है, ऐसे धर्मतत्त्व को प्रज्ञा ही देख सकती है। "प्रथम तीर्थंकर के मुनि ऋजुजड़ और चरम तीर्थंकर के मुनि १-तृण पाँच प्रकार के कहे गये हैं : तृण पंचकं पुनर्भणितं जिनैः कर्माष्टप्रन्थि मथनैः । शालिीहिः कोद्रवो रालकोऽरण्य तृणानि च ॥१॥ -उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित, पत्र २६६.२ ३--श्री ऋषभ तीर्थ जीवा ऋजु जड़ास्तेषां धर्मस्य अवबोधो दुर्लभो जड़त्वात्कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, पत्र ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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