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तीर्थङ्कर महावीर
टंक भगवान् महावीर का भक्त श्रावक था । जमालि के तर्क को गलती की ओर सुदर्शना का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ढंक ने सुदर्शना की संघाटी ( चादर ) पर अग्निकरण फेंका संघाटी जलने लगी तो सुदर्शना बोली" आर्य ! यह क्या किया । मेरी चादर जब दी !" ढंक ने उत्तर दिया"संघाटी जली नहीं अभी जल रही है । आपका मत जले हुए को जला कहना है, आप जलती हुई संघाटी को 'जली' क्यों कहती हैं ?"
सुदर्शना ढंकका लक्ष्य समझ गयी और अपने समुदाय के साथ भगवान् के संघ में पुनः सम्मिलित हो गयी । '
भगवान् ने अपना वह वर्षावास मिथिला में बिताया ।
१ - विशेषावश्यक भाषा सटीक, गाथा २३२५ – २३३२ । उत्तराध्ययन नेमिचंद्र की टीका सहित, पत्र ६६ - २
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