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सुदर्शना वापस लौटी
१६३ "पर, हे जमाशि ! लोक अशाश्वत है । कारण कि, अवसर्पिणी होकर उत्सर्पिणी होती है । उत्सर्पिणी होकर अवसर्पिणी होती है। "
"इसी प्रकार जीव शाश्वत है । कारण कि, ऐसा कदापि नहीं था कि, 'जीव कदापि न रहा हो' और, वह अशाश्वत है कारण कि, वह नैरयिक तिर्यंच आदि का रूप धारण करता है।"
भगवान् ने जमालि को समझाने का प्रयास किया; पर जमालि ने अपना कदाग्रह न छोड़ा और वर्षों तक अपने मत का प्रचार करता विचरता रहा । उसके ५०० साधुओं में से उसके कितने ही साधु तथा प्रियदर्शना और उसकी १००० साध्वियों में कितनी ही साध्वियाँ जमालि के साथ हो गयीं।
अंत में, १५ दिनों का निराहार व्रत करके मृत्यु को प्राप्त होकर जमालि लान्तक-देवलोक (६-वाँ देवलोक ) में किल्विष-नामक देव हुआ।
विशेषावश्यक माष्य में इस निह्नव का काल बताते हुए लिखा हैचोद्दस वाभाणि तया जिणेण उप्पडियस्स नाणस्स । तो बहुरयाण दिठी सावत्भीए समुप्पन्ना ॥२३०७॥
सुदर्शना वापस लौटी जमालि के जीवन-काल में. ही एक समय सुदर्शना साध्वी समुदाय के साथ विचरती हुई श्चावस्ती में हंक कुम्हार की भाण्डशाला में ठहरी थी।
१-किल्विषिक देवों के सम्बन्ध में भगवतीसूत्र सटीक शतक ६, उद्देशा ६, सूत्र ३८ ६ पत्र ८६७-८६८ में प्रकाश डाला गया है।
२-भगवतीसूत्र सटीक शतक ६, उद्देशा ६ सूत्र ३८६.३८७ पत्र ८८६-८६६ ।
भगवान् के १४ वें वर्षावास में हम उन ग्रंथों का नाम दे चुके हैं, जहाँ जमालि का नाम आता है।
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