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________________ १६० तीर्थकर महावीर दिगम्बरों ने जो आन्दोलन किया, उसके लिए सुखलाल ने 'हिटलरी' शब्द का प्रयोग किया और अन्यों को चैलेंज करते हुए लिखते हैं कि “कौशाम्बी जी कहते हैं कि यदि कोई ऐतिहासिक अथवा दलील से मेरी भूल समझा दे तो मैं आज मानने को तैयार हूँ।” कोई समझाए, क्या जब कोई समझने को ही तैयार न हो ? और, मुग्वलाल यह चैलेंज सुनाते किसको है— स्वयं भी जैन थे, जैन परम्परा से परिचित थे, स्वयं ही क्यों नहीं समझा दिया। .. हम पहले लिख आये हैं कि बौद्ध-ग्रंथों में ही जैनों की अहिंसा वर्णित है और लिखा है बौद्ध मांस खाते थे, पर जैन नहीं खाते थे तो फिर और कहाँ का ऐतिहासिक प्रमाण और दलील उन्हें चाहिए था । असल बात तो यह है कि यही सुखलाल उन्हें बरगलाने वाला था और उसके बहाने अपने मन की बात कहता था। उसी लेख में सुखलाल ने लिखा--"इस कौशाम्बी-विरोधी-आन्दोलन का छींटा मुझ पर स्पर्श करने लगा।" जब आपने ही यह सब किया था, तो फिर छींटा लगने पर आपको क्या आपत्ति ! मुम्बलाल के सम्बन्ध में मैंने जो कहा है, वह सब लिखते मुझे दुःख हुआ। कारण कि सुखलाल को आँखें थी नहीं, जब वे काशी पाठशाला में आये तो मैंने उसे सिद्धहेमव्याकरण हस्त लिखित पोथी से पढ़-पढ़ कर सुनाकर स्मरण कराया। पंडित बनाने का यह तात्पय नहीं कि. मुग्वलाल उसी पेड़ पर कुल्हाड़ा चलाये जिस पर वह बैठा है । प्रथम निन्हव : जमालि हम पहले बता आये हैं कि, किस प्रकार जमालि भगवान से पृथक हुआ और स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगा। एक बार जमालि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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