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तीर्थंकर महावीर
" उसमें मल्ली तीर्थकर, श्वेताम्बर, आगम की प्रामाणिकता आदि - विचार पंडित जी ( फूलचंद ) के अपने निजी हैं और पाठकों को उन्हें उसी रूप में देखना चाहिए । हमारी दृष्टि से वे कथन यदि इस ग्रंथ में न होते तो क्या अच्छा था; क्योंकि जैसा हम ऊपर कह आये हैं, यह रचना जैन समाज भर में लोकप्रिय है । उसका एक सम्प्रदाय - विशेष सीमित क्षेत्र नहीं है ।"
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और, देवनन्दी का आश्रय ही क्या ? जब कि, दिगम्बर होने के नाते वह आगम-विरोधी थे और न तो आगमों के पंडित थे और न आगमों के सम्बंध में उनकी कोई कृति ही है ।
सुखलाल ने आगमों की प्राचीनता का प्रमाण देते हुए लिखा है"अगर आगम भगवान् महावीर से अनेक शताब्दियों के बाद किसी एक फिरके द्वारा नये रचे गये होते तो उनमें ऐसे सामिष आहार ग्रहणसूचक सूत्र आने का कोई सबब न था ।
याकोबी ने बुद्ध और महावीर को बौद्धों से प्राचीन सिद्ध किया, इसका उल्लेख उसी पुस्तिका में लिखा है
पाठक इस अंतर का रहस्य स्वयमेव समझ सकते हैं कि, याकोबी उपलब्ध ऐतिहासिक साधनों के बलाबल की परीक्षा करके कहते हैं जब कि साम्प्रदायिक जैन -विद्वान् केवल साम्प्रदायिक मान्यता को किसी भी प्रकार की परीक्षा किये बिना प्रकट करते हैं ।" ( पृष्ठ ६ )
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- निर्गथ सम्प्रदाय, पृष्ठ २५ पृथक सिद्ध करके जैन-धर्म को करते हुए सुखलाल ने अपनी
१ - तत्वार्थ सूत्र भूमिका ।
२- सेक्रेड बुक्स व द' ईस्ट वाल्यूम २२, की भूमिका में डाक्टर याकोबी ने लिखा है, कि जैनों के धार्मिक ग्रंथ 'क्लासिकल' कहे जाने वाले समस्त संस्कृत साहित्य से पुराना है
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