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________________ १८६ तीर्थंकर महावीर देवनंदी' । सुखलाल ने उनका काल ६-टीं शताब्दी बताया है । हम यहाँ देवनंदी के समय आदि पर विवाद न उठा कर, केवल इतना मात्र कहेंगे कि, जैन आगम तो उससे शताब्दियों पहले के हैं । फिर देवनंदि से पुराना कोई उदाहरण सुखलाल ने क्यों नहीं दिया । 66..... देवनंदी सम्बन्धी सुखलाल के विचार कैसे हैं, इसे ही हम पहले यहाँ लिख देना चाहेंगे। अपनी तत्त्वार्थसूत्र ( हिन्दी अनुवाद सहित ) की भूमिका में सुखलाल ने देवनंदी का उल्लेख करते हुए लिखा है :'कालतत्त्व, केवलिकवलाहार, अचेलकत्व और स्त्री-मोक्ष-जैसे विषयों के तीव्र मतभेद धारण करने के बाद और इन बातों पर साम्प्रदायिक आग्रह बँध जाने के बाद ही सर्वार्थसिद्धि लिखी गयी है; जब कि भाष्य मैं साम्प्रदायिक अभिनिवेश का यह तत्त्व दिखायी नहीं देता । जिन-जिन बातों में रूढ़ श्वेताम्बर- सम्प्रदाय के साथ दिगम्बर-सम्प्रदाय का विरोध है, उन सभी बातों को सर्वार्थसिद्धि के प्रणेता ने सूत्रों में फेरफार करके या उनके अर्थ में खींचातान करके या असंगत अध्याहार आदि करके चाहे जिस रीति से दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुकूल पड़े उस प्रकार सूत्रों में से उत्पन्न करके निकालने का साम्प्रदायिक प्रयत्न किया है; 'सर्वार्थसिद्धि के कर्त्ता को जिन बातों में श्वेताम्बर सम्प्रदाय का खंडन करना था • और बहुत से स्थानों पर तो वह उल्टा दिगम्बर- परम्परा से बहुत विरुद्ध जाता था । इससे पूज्यपाद ने भाष्य को एक तरफ रख सूत्रों पर स्वतंत्र टीका लिखी और ऐसा करते हुए सूत्रपाठ मैं इष्ट सुधार तथा वृद्धि की .....१,३ (6...... १ - निर्गंध समुदाय, पृष्ठ १२, १३ २ -- तत्त्वार्थसूत्र, भूमिका पृष्ठ ८८ ३ - वही, पृष्ठ ८८-दई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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