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________________ स्टेन कोनो का मत १८३ that must be rejected. The words of the Ayaranga are consequently tachnical terms and do not imply that meat and fish might be eaten. -"मैं केवल एक ही तफसील का उल्लेख करूँगा; क्योंकि यूरोपियनों के साधारण विचार का जैन लोग बड़ा विरोध करते हैं । 'बहु अद्विय मंस'. और 'बहुकंटग मच्छ' का उल्लेख आचारांग में आया है । उससे लोग यह तात्पर्य निकालते हैं कि, पुराने समय में इनकी अनुमति थी। यह विचार पृष्ठ १३७ पर दिया है। 'रिव्यू आव फिलासफी ऐंड रेलिजन' वाल्यूम १४, संख्या २,पूना १९३३ में प्रोफेसर कापड़िया ने याकोबी का १४ फरवरी १९२८ का एक पत्र प्रकाशित किया है । मेरे विचार से उक्त पत्र से सारा मामला खतम हो गया। मछली में मांस ही खाया जा सकता है, उसका सेहरा और उसकी हड्डियाँ खायी नहीं जा सकती । यह एक प्रयोग है, जिससे व्यक्त होता है कि, जिसका अधिकांश भाग का परित्याग कर देना पड़े , उसे नहीं लेना चाहिए । आचारांग के ये शब्द 'टेकनिकल' शब्द है । इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि, मांस अथवा मछली खाने की अनुमति थी।" याकोबी के बाद इस प्रश्न को धर्मानंद कौसाम्बी ने उठाया। उन्होंने पुरातत्त्व (खंड ३ अंक ४, पृष्ठ ३२३, आश्विन सं० १९८१ वि०) में एक लेख लिखा, जिसमें आचारांग आदि का पाट देकर उन्होंने जैनों पर मांसाहार का आरोप लगाया। उसका भी जैनों ने खुलकर विरोध किया । उस समय तो नहीं, पर जब कौशाम्बी ने 'भगवान् बुद्ध' पुस्तक लिखी तो उसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा कि ".. 'वास्तव में उनकी खोज मैंने नहीं की थी। मांसाहार के विषय १- देखिये 'लैटर्स टु विजयेन्द्र मूरि', पृष्ठ २६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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