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तीर्थकर महावीर
बात स्पष्ट हो जाती है । उसकी चर्चा करने का मेरा उदेश्य यह है कि मैं उनके स्पष्टीकरण की ओर जितना संम्भव हो, उतने अधिक विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ । पर, निश्चय ही अभी भी ऐसे लोग होंगे जो पुराने सिद्धान्त पर दृढ़ रहेंगे । मिथ्यादृष्टि से मुक्त होना बड़ा कठिन है, पर अंत में सदा सत्य की विजय होती है ।"
डाक्टर स्टेन कोनो अपने विचारों पर आजीवन दृढ़ रहे और जब किसी ने जैन - पाठों का अनर्गल अर्थ किया तो स्टेन कोनो ने उसकी निन्दा की । डाक्टर वाल्थेर शूविंग की जर्मन भाषा में प्रकाशित पुस्तक 'दाई लेह देर जैनाज' की आलोचना करते हुए डाक्टर स्टेन कोनो ने लिखा था
......I shall only mention one detail, because the common European view has here been largly resented by the Jainas. The mention of 'bahuyattbiya manɛa' and 'bahukantaga maccha' "meat" cr "fish" with many bones in Ayarang has usually been interpreted so as to imply that it was in olden times, allowed to eat meat and fish, and this interpretation is given on p. 137, In the 'Review of Philosophy and Religion' vol. IV No. 2. Poona, 1933, pp.75. Professor Kapadia has however published a letter from Prof Jacobi of the 14th. Feb. 1928. which in my opinion settles the matter. Fish of which the flesh may be eaten, but the scales and bones must be taken out was a school example of an object containing the substance which is wanted in intimate connexion with much
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