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________________ पहली भिक्षा क्यों अग्राह्य १७७ -~धर्मसंग्रह (गुजराती-अनुवाद ) पृष्ठ २११-२१२ ऐसा ही उल्लेख श्राद्धविधि (गुजराती-अनुवादक, पृष्ठ ४४) में भी है। पर्युषित के नियम का स्पष्ट उल्लेख धर्मसंग्रह (टिप्पणि-सहित ) चलितो-विनष्टो रसः-स्वाद उपलक्षणत्वाद्वर्णादिर्यस्य तच्चलितरसं, कुथितान्नपर्युषितद्विदल पूपिकादि केवल जलराद्ध करायनेक जंतु संसक्तत्वात् ......। -धर्मसंग्रह ( टिप्पन-सहित ) पत्र ७६-१ ___--चलित रस की परिभाषा बताते हुए कहा गया है कि जिसका रस और स्वाद बिगड़ गया हो और उपलक्षण से रूप-रस-गंध-स्पर्श में बदल गया हो, वह सभी वस्तुएँ चलितरस कही जाती हैं। (पानी में) राधा अन्न, बासी रखी दाल, नरम पूरी, पानी में राधा चावल आदि में अनेक जीव उत्पन्न हो जाते हैं। पर, यहाँ तो भोजन का प्रसंग ही नहीं है। हम पहले प्रमाण दे आये हैं कि, भगवान् ने दान में जो लिया वह तो ओषधि थी। ओषधि में ताजे-बासी का प्रश्न ही नहीं उठता । । भगवान् ने पर्युषित वस्तु ली, इससे भी स्पष्ट है कि वह पानी में पकायी वस्तु नहीं थी और मांस कदापि नहीं हो सकता । पहली मिक्षा अग्राह्य क्यों ? भगवान् ने पहली भिक्षा को मना क्यों किया और दूसरी वस्तु क्यों मँगवायी ? इस प्रश्न का उत्तर भगवती में ही दिया । पहली भिक्षा (कुष्मांड वाली) को भगवती में भगवान् ने कहा है मम अटाए अर्थात् वह मेरे निमित्त है । तो उसके लिए कहा कि-- १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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