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________________ १७५ उदके कपूरादिकमुपयुज्यते श्राम्रादिफलेषु सुत्तादीनि द्रव्याणि 'शृंगवेरे च' शुण्ठयां गुल उपज्यते । न चैतानि कर्पूरादीनि क्षुधां क्षपयन्ति, परमुपकारित्वादाहार उच्यते । - वृहत्कल्पसूत्र सटीक सभाष्य, विभाग ५, पृष्ठ १५८४ ( ३ ) खाइम की टीका करते हुए टागांग सूत्र में लिखा हैखादः प्रयोजनमस्येति खादिमं फल वर्गादि -टाणांग सूत्र सटीक, पूर्वार्द्ध, पत्र २२० - १ 'खाइम्' का स्पष्टीकरण प्रवचनसारोद्वार में इस प्रकार किया गया है । भत्तोसं दंताई खज्जूरंग नालिकेर दक्खाई । कक्कडि बग फणसाइ बहुविहं खाइयं ने यं ॥ २०६ ॥ इसकी टीका उक्त ग्रंथ में इस प्रकार दी है 'भत्तोस' मित्यादि भक्तं च तद्भोजनमोषं च - दाह्यं भक्तौषं, रूढ़ितः परिभ्रष्टचनक गोधूमादि 'दन्त्यादि' दन्तेभ्यो हितं दन्यंगुन्दादि आदि शब्दाच्चारु कुलिका खण्डेनु शर्करादि परिग्रहः यद्वा दन्तादि देश विशेष प्रसिद्धं गुड संस्कृत दन्त पचनादि तथा खर्जूरनालिकेर द्राक्षादिः आदि शब्दादक्षोटक बदामादि परिग्रहः तथा कर्कटिकाम्रपनसादि श्रादि शब्दात्कदल्यादि फलं पटल परिग्रहः बहुविधं खादिम् ज्ञेयम् । 'परियासिए' - प्रवचनसारोद्वार, पत्र ५१-१ इस 'खाइम्' के सम्बन्ध में वृहत्कल्पसूत्र में एक गाथा आती है— श्रहवा जं भुक्खत्तो, कमउवमाइ पक्खिवर कोट्टे । सव्वो सो आहारो, श्रसहभाई पुणो भइतो ॥ २९०२ ॥ - वृहत् कल्पसूत्र सभाष्य सटीक विभाग ५, पृष्ठ १५८४ इसमें ओषधि को भी 'खाइम्' में गिना है । वहाँ टीका में आता है— Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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