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तीर्थंकर महावीर परिवासितस्य रजन्यां स्थापितस्याहारस्य
___ ---वृहत्कल्पसूत्र सभाष्य सटीक, विभाग ५, पृष्ठ १९८४ ठाणांगसूत्र में आहार चार प्रकार का बताया गया हैचउविहे आहारे पं० २०-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे
ठाणांगसूत्र सटीक, टा० ४, उ० २, सूत्र २९५ पत्र२१९-२ (१) असण शब्द की टीका करते हुए ठाणांग के टीकाकार ने लिखा हैअश्यत इति अशनम्-ओदनादि
-टाणांगसूत्र सटीक, पत्र २२०-१ वृहत्कल्प में उसकी टीका इस प्रकार की गयी हैअशने कूरः 'एकाङ्गिकः' शुद्ध एव सुद्धं नाशयति
-वृहत्कल्प सभाष्य सटीक, विभाग ५, पृष्ठ १५८४ प्रवचनसारोद्धार, 'असण' के सम्बन्ध में लिखा हैअसणं ओयणं सत्थुग सुग्ग जगाराइ खज्जगविही य । खीराह सूरणाई मंडगपभिई य विन्नेयं ।
—प्रवचनसारोद्धार सटीक, द्वार ४, गाथा २०७, पत्र ५१-१ धर्मसंग्रह में उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया गया है
भक्तं राधान्यं सुखभक्षिकाऽऽपि -धर्मसंग्रह, (यशोविजय की टिप्पन सहित) अधि० २, पत्र ८१-१ (२)पाण शब्द की टीका ठाणांग में इस प्रकार लिखी हैपीयत इति पानं सौवीरादिक
-ठाणांगसूत्र सटीक, पूर्वार्द्ध, पत्र २२०-१ उदक के सम्बन्ध में वृहत्कल्पसूत्र में इस प्रकार आता हैउदए कप्पूराई फलि सुत्ताईणि सिंगबेर गुले । न य ताणि खविंति खुहं उवगारित्ता उ आहारो॥ और, उसकी टीका इस प्रकार दी गयी है...
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