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________________ २७४ तीर्थंकर महावीर परिवासितस्य रजन्यां स्थापितस्याहारस्य ___ ---वृहत्कल्पसूत्र सभाष्य सटीक, विभाग ५, पृष्ठ १९८४ ठाणांगसूत्र में आहार चार प्रकार का बताया गया हैचउविहे आहारे पं० २०-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ठाणांगसूत्र सटीक, टा० ४, उ० २, सूत्र २९५ पत्र२१९-२ (१) असण शब्द की टीका करते हुए ठाणांग के टीकाकार ने लिखा हैअश्यत इति अशनम्-ओदनादि -टाणांगसूत्र सटीक, पत्र २२०-१ वृहत्कल्प में उसकी टीका इस प्रकार की गयी हैअशने कूरः 'एकाङ्गिकः' शुद्ध एव सुद्धं नाशयति -वृहत्कल्प सभाष्य सटीक, विभाग ५, पृष्ठ १५८४ प्रवचनसारोद्धार, 'असण' के सम्बन्ध में लिखा हैअसणं ओयणं सत्थुग सुग्ग जगाराइ खज्जगविही य । खीराह सूरणाई मंडगपभिई य विन्नेयं । —प्रवचनसारोद्धार सटीक, द्वार ४, गाथा २०७, पत्र ५१-१ धर्मसंग्रह में उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया गया है भक्तं राधान्यं सुखभक्षिकाऽऽपि -धर्मसंग्रह, (यशोविजय की टिप्पन सहित) अधि० २, पत्र ८१-१ (२)पाण शब्द की टीका ठाणांग में इस प्रकार लिखी हैपीयत इति पानं सौवीरादिक -ठाणांगसूत्र सटीक, पूर्वार्द्ध, पत्र २२०-१ उदक के सम्बन्ध में वृहत्कल्पसूत्र में इस प्रकार आता हैउदए कप्पूराई फलि सुत्ताईणि सिंगबेर गुले । न य ताणि खविंति खुहं उवगारित्ता उ आहारो॥ और, उसकी टीका इस प्रकार दी गयी है... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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