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________________ 'परियासिए' १ वृक्षादनी चर्मकषा, भू कुष्माण्डयश्व वल्लभा । विडालिका वृक्षपर्णी, महाश्वेता परा तु सा ।' (२) विडालिका अथवा विडाली = भुइकोइला' (३) विडालो = भूमि कुष्माण्डे (४) विडाल = ए स्पिसीज प्राव प्लांट मार्जार के साथ जो 'कृत' शब्द लगा है, इससे अर्थ और भी स्पष्ट हो जाता है; क्योंकि हम पहले ही कह चुके हैं कि पशुविद्ध जंतु आयुर्वेद में भी अभक्ष्य कहा गया है। . इन प्रमाणों से स्पष्ट हो गया कि भगवती वाले पाठ का मांसपरक. अर्थ लग ही नहीं सकता। 'परियासिए' भगवती के पाठ में 'परियासिए' शब्द आया है । इसका संस्कृत रूप 'परिवासित' हुआ। इसकी टोका अभयदेवसूरि ने 'ह्यस्तनमित्यर्थः' किया है :( भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२७० )। 'ह्यस्तन' शब्द का अर्थ. शब्दार्थ-चिन्तामणिकोप में दिया हैह्योभूते अतीतेह्नि जाते __ -भाग ४, पृष्ठ:१०३७ ऐसा ही अर्थ आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी, भाग ३, पृष्ठ १७७६ में भी है । यह शब्द वृहत्कल्पसूत्र में भी आया है। वहाँ उसकी टीका इस प्रकार की गयी है : १- निधण्टशेष हेमचन्द्राचार्य-रचित (दे० ला० जै० ग्र० ६२, ) श्लोक २०८. पृष्ठ २६६ २-निधण्टु-रत्नाकर, भाग १, कोष खंड, पृष्ठ १७६ ३-शब्दार्थ-चिंतामणि, भाग ४, पष्ठ ३२२ ४-मोन्योर-मोन्योर विलियम्स संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी, पष्ठ ७३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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