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________________ 'मज्जार कडए' १७१ वागभट्ट में उसका गुण इस प्रकार बताया गया है.त्वतिक्त कटुका स्निग्धा मातुलुंग्स्य वातजित् । वृहणं मधुरं मांसं वात पित्त हरं गुरु ॥ -वागभट्ट भाव प्रकाश में उसका गुण इस प्रकार बताया गया है:बोजपुरो मातुलुंगो रुचकः फल पूरकः । बोजपुर फलं स्वादु रसेऽम्लं दीपनं लघु ।। १३१ ॥ . रक्त पित्त हरं कण्ठ जिह्वा हृदय शोधनम् । श्वास कासाऽरुचिहरं हृद्यं तृष्णा हरं स्मृतम् ।। १६२॥ बीजपुरोऽपरः प्रोक्तो मधुरो मधु कर्कटी। मधुकर्कटिका स्वादी रोचनी शीतला गुरुः ।। १३३ ॥ रक्त पित्त क्षय श्वास कास हिक्का भ्रमाऽपहा ॥ १३४ ॥ -भावप्रकाश-निघण्टु ( व्यंकटेश्वर प्रेस, सं० १९८८) पृष्ठ १०३ -बिजौरा रक्त-पिक्त नाशक है, कण्ठ-जिह्वा हृदय शोधक है !! श्वास, कास, अरुचि का दमन कारता है और तृष्णाहारक है। 'मज्जार कडए' भगवती के पाट में तीसरा शब्द 'मज्जार कडए' है । इसका संस्कृत रूप 'मार्जार कृत' हुआ । 'कृत' से भ्रामक अर्थ लेकर कुछ लोग उसका अर्थ 'बिल्ली का मारा हुआ' करते हैं। पर पशु से कटा हुआ अथवा बिधा हुआ मांस वैद्यक ग्रंथों में भी दूषित बताया गया है और मांसाहारियों के लिए भी निषिद्ध है।' फिर, इस प्रकार अर्थ करना सर्वथा भ्रामक न कहा जाये तो क्या कहा जाये। टीका की सर्वथा उपेक्षा करके 'मार्जार' से 'बिल्ली' और 'कृत' से मारा हुआ अर्थ करना मात्र उच्छृखलता है। १-सुश्चुत-संहिता, सूत्र स्थान, अ० ४६, श्लोक ७५, पृष्ट ४२४ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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