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तीर्थंकर महावीर
(३) मधुकुक्कुटिका, मधुकुक्कुटी = नीबू का पेड़ विशेष ' (४) मधुकुक्कुट टी = ए सार्ट आव साइटून ट्री
यहाँ कुक्कुटी के पूर्व 'मधु' शब्द जुटने से किसी प्रकार भ्रम में न पड़ना चाहिए । 'मधु' शब्द कुक्कुटी का विशेषण है । विशेषण को हटाकर भी प्रयोग संस्कृत में हुआ करते हैं । अब मातुलुंग का गुण देखिए :
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लध्वम्लं दीपनं हृद्यं मातुलुंगमुदाहृतम् । त्वक् तिक्ता दुर्जरा तस्य वातकृमिकफापहा ॥ स्वादु शीतं गुरु स्निग्धं मांसं माहत पित्तजित् । मेध्यं शूलानिलच्छद्दिकं फारोचक नाशनम् ॥ दीपनं लघु संग्राहि गुल्मार्शोघ्नं तु केसरम् । शूलाजीर्ण विबंधेषु मन्दाग्नौ कफमारुते ।
चौ च विशेषणरसस्तस्योपदिश्यते पित्त निलकरं बालं पित्तलं बद्ध केशरम् ॥
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— मातुलुंग हल्का है, खट्टा है, दीपन है, हृदय को हित है । उसका छिलका कड़वा है, दुर्जर है, तथा वायु कृमि-कफ नाशक है । उसका मांस ( गूदा ) मधुर, शीतल, गुरु, स्निग्ध है । वायु और पित्त को जीतने वाला है, मेधाजनक है, और शूल, वायु, कफ और अरुचिनाशक है । उसका केसर दीपन है, हल्का है, ग्राही है, गुल्म - बवासीर - नाशक है । शूल, अजीर्ण, चिबंध और मंदाग्नि तथा कफ-वायु के रोगों में और विशेष कर अरुचि में इसका रस लेना श्रेष्ठ कहा है और कच्चा बिजौरा जिसका जीरा खिला न हो, पित्त-वातकर्ता तथा पित्तल है ।
छर्दि,
१ - संस्कृत शब्दार्थ - कौस्तुभ, पृष्ठ ६३७
२– आप्टेज संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी, भाग २, पृष्ठ १२३९ ३ - सुश्रुत संहिता, सूत्र स्थान, अ० ४६, श्लोक ११-१४ पृष्ठ ४२६
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