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बनस्पतियों के प्राणिवाचक नाम उसे अस्थि कहते हैं। घी डालने पर उसी का नाम 'मजा' होता है। इस प्रकार पक कर जो पदार्थ बनता है, उसका नाम पाक्त पशु होता है ।
ऐतरेय-ब्राह्मण में भी इसी प्रकार का स्पष्टीकरण मिलता है
स वा एष पशुरेवालभ्यते यत्पुरोडाशस्तस्य यानि किंशारूपाणि तानि रोमाणि । ते तुषाः सा त्वक। ये फलीकरणस्तद् असृग थपिष्ठं सन्मांसम् । एष पशूनामेधेन यजते.
-इम मंत्र में पुरोडाश के अन्तर्गत जो अन्न के दाने हैं, उन्हें अन्न - मय पशु का रोम, भूसी को त्वचा, टुकड़ों को सींग और आटे को मांस नाम दिया गया है।
वनस्पतियों के प्राणिवाचक नाम तथ्य यह है कि, उतावली प्रकृति के लोग प्रसंग में आयी वनस्पतियों के प्राणिवाचक-नापों से भ्रम में पड़ जाते हैं। पर, वैद्यक-ग्रंथों में और कोषों में ऐसी कितनी ही वनस्पतियाँ मिलेंगी, जिनके नाम प्राणिवाचक हैं । यह इतना लम्बा प्रकरण है कि, यदि सबको संग्रह करना हो तो वस्तुतः कोष-निर्माण-सरीखा काम हो जाये । पर, उदाहरण के रूप में हम कुछ नाम यहाँ दे रहे हैं:मार्जारि
= कस्तूरी'
माजारिका
मृगनाभि हस्ति
= मुश्क = अजमोद
१-निघंटु-रत्नाकर ( मराठी-अनुवाद सहित-निर्णयसागर प्रेस) शब्दकोष
खंड पृष्ठ १५१ २-वही, पष्ठ १५५ ३--वही, पृष्ठ २१८
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