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________________ १६६ तीर्थंकर महावीर वृक्ष के बाहरी भाग में छाल है । पुरुष की त्वचा से ही रक्त निकलता है, वृक्ष की त्वचा से गोंद निकलती है । पुरुष और वृक्ष की इस समानता के ही कारण, जिस प्रकार आघात लगने पर वृक्ष से रस निकलता है, उसी प्रकार चोट खाये पुरुष शरीर से रक्त प्रवाहित होता है पुरुष के शरीर में मांस होता है । वैसा ही वनस्पति में भी होता है । पुरुष में स्नायु होते हैं और वृक्षों में किनाट । वह किनाट स्नायु की भाँति स्थिर होता है । । 1 पुरुष के स्नायु-जाल के भीतर जैसे हड्डियाँ होती हैं, वैसे ही वृक्ष के किनार के भीतर काष्ठ है तथा मजा तो दोनों ही में एक समान ही है । किन्तु, यदि वृक्ष को काट दिया जाये तो वह अपने मूल से पुनः और नवीन होकर अंकुरित होता है, पर यदि मनुष्य को मृत्यु काट डाले तो वह किस मूल से उत्पन्न होगा । - कल्याण, उपनिषद्-अंक, पृष्ठ ४८५ वैदिक ग्रंथों में इस प्रकार के अनन्त प्रयोग मिलेंगे । पाण्डेय रामनारायण शास्त्री ने अपने एक लेख में ऐसे कई प्रसंग दिये हैं । शतपथब्राह्मण का उदाहरण देते हुए उन्होंने निम्नलिखित अंश उद्धृत किया है यदा पिष्टान्यथ लोमानि भवन्ति । यदाय श्रानयत्यथ त्वग् भवति । यदा स यौत्यथ मांसं भवति । संतत इव हि तहिं भवति संततमिव हि मांसम् । यदा शृतोऽथास्थि भवति । दारुण इव तहिं भवति । दारुण मित्यस्थि । अथ यदुद्वासयन्नभिघारयति तं मज्जानं ददाति । एषा सा संपद् यदाहुः । पाक्तः पशुरिति । -केवल पिसा हुआ सूखा आटा 'लोम' है । पानी मिलाने पर वह 'चर्म' कहलाता है | गूँथने पर उसकी संज्ञा 'मांस' होती है । तपाने पर १ - कल्याण ( वर्ष २३, अंक १ ) उपनिषद् अंक, पृष्ठ १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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