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मर्कटी
वानरी
वनसूकरी
तीर्थंकर महावीर
करंज, कुहिली, अजमोद'
कुहिली
कुहिली 'कवोय' का अर्थ
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*
'कोय' का संस्कृत रूप 'कपोत' है । टीकाकार ने इसकी टीका इस प्रकार की है :
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'फले वर्ण साधर्म्यात्ते कपोते कुष्माण्डे हस्त्रे कपोते कपोतके ते च शरीर वनस्पति जीव देहत्त्वात् कपोतक शरीरे अथवा कपोतकशरीरे इव धूसर वर्ण साधर्म्यादेव कपोतकशरीरे कुष्माण्ड फले.
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हम पहले ही लिख चुके हैं कि, कुष्माण्ड के ही अर्थ में 'कपोत' चरित्र-ग्रन्थों में भी लिया गया है । ' कपोत' शब्द वैद्यक-ग्रंथों में कितने ही अप्राणिवाचक अर्थों में आया है— जैसे नीला सुरमा, लाल सुरमा, साजोखार, एक प्रकार की वनस्पति, पारीस पीपर आदि। और, कपोतिका का अर्थ वैद्यक-ग्रन्थों में कुष्माण्ड भी दिया है । कुष्माण्ड का गुण सुश्रुत संहिता में इस प्रकार दिया है ।
पित्तघ्नं तेषु कुष्माण्डं वालं मध्यं कफाहरम् | पक्क लघुष्णं सक्षारं दीपनं वास्ति शोधनम् ॥
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१ - वही, पृष्ट १४५
२ – वही, पृष्ठ १७६
३ -- वही, पृष्ठ १७२
४ - भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२७०
५ - निघण्टु रत्नाकर, कोष-खंड,
- वैद्यक शब्द सिंधु
पृष्ठ २७
७ - सुश्रुत संहिता
- निघण्टु रत्नाकर, कोष-खंड, पृष्ठ २७
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