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________________ १६८ मर्कटी वानरी वनसूकरी तीर्थंकर महावीर करंज, कुहिली, अजमोद' कुहिली कुहिली 'कवोय' का अर्थ = * 'कोय' का संस्कृत रूप 'कपोत' है । टीकाकार ने इसकी टीका इस प्रकार की है : - 'फले वर्ण साधर्म्यात्ते कपोते कुष्माण्डे हस्त्रे कपोते कपोतके ते च शरीर वनस्पति जीव देहत्त्वात् कपोतक शरीरे अथवा कपोतकशरीरे इव धूसर वर्ण साधर्म्यादेव कपोतकशरीरे कुष्माण्ड फले. ..१४ हम पहले ही लिख चुके हैं कि, कुष्माण्ड के ही अर्थ में 'कपोत' चरित्र-ग्रन्थों में भी लिया गया है । ' कपोत' शब्द वैद्यक-ग्रंथों में कितने ही अप्राणिवाचक अर्थों में आया है— जैसे नीला सुरमा, लाल सुरमा, साजोखार, एक प्रकार की वनस्पति, पारीस पीपर आदि। और, कपोतिका का अर्थ वैद्यक-ग्रन्थों में कुष्माण्ड भी दिया है । कुष्माण्ड का गुण सुश्रुत संहिता में इस प्रकार दिया है । पित्तघ्नं तेषु कुष्माण्डं वालं मध्यं कफाहरम् | पक्क लघुष्णं सक्षारं दीपनं वास्ति शोधनम् ॥ Jain Education International १ - वही, पृष्ट १४५ २ – वही, पृष्ठ १७६ ३ -- वही, पृष्ठ १७२ ४ - भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२७० ५ - निघण्टु रत्नाकर, कोष-खंड, - वैद्यक शब्द सिंधु पृष्ठ २७ ७ - सुश्रुत संहिता - निघण्टु रत्नाकर, कोष-खंड, पृष्ठ २७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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