SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ तीर्थकर महावीर __इसी अर्थ में 'मांस' का प्रयोग जैन ग्रन्थों में भी हुआ है । और, प्रसंग को देखते हुए उनका स्पष्ट अर्थ फल का गूदा ही है। हम ऐसे कुछ प्रसंग यहाँ दे रहे हैं: (१) विंट स मंस कडाहं एयाइं हवंति एग जीवस्त -प्रज्ञापनासूत्र सटीक ( समिति वाला), १, ९१ पत्र ६२-२; (बाबू वाला ) पत्र ४०-२ इसकी टीका वहाँ इस प्रकार दी है 'सकडाह' त्ति समासं सगिरं यथा कटाह एतानि त्रीण्यकस्य जीवस्य भवन्ति, एक जीवात्मकान्येतानि त्रीणि भवन्तीत्यर्थः ___-~वही, पत्र ३७-२ 'मांस' के समान ही जैन-शास्त्रों में 'अहि' का भी प्रयोग हुआ हैवहाँ 'अट्ठि' से तात्पर्य 'हड्डी' नहीं वरन् 'बीज' से है। हम यहाँ इस सम्बन्ध में कुछ उद्धरण दे रहे हैं : (१) से किं तं रुक्खा ? रुक्खा दुविहा पन्नता, तं जहाएगट्टिया य बहुबीयगा। से किं तं एट्टिया? एगट्टिया अणेग विहा पन्नत्ता। -प्रज्ञापनासूत्र सटीक, पत्र ३१-१ (२) से किं तं रुक्खा ? दुविहा पण्णत्ता तंजहा-एगट्टिया य बहुबीयगा य । से किं तं एगट्टिया ?......... -जीवाजीवाभिगमसूत्र सटीक, पत्र २६-१ आयुर्वेद में 'मांस' का प्रयोग जैन-शास्त्रों के अनुरूप ही आयुर्वेद में भी 'मांस' का प्रयोग फल के गूदे के लिए हुआ है। ऐसे कितने ही उदाहरण मिलेंगे । हम उनमें से कुछ यहाँ दे रहे हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy