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मांस की प्रकृति
१६३ इन रोगों के प्रसंग में हमें अब यह देखना चाहिए कि, क्या मांस उनकी दवा हो सकती है अथवा क्या मांस दिया जा सकता है।
मांस की प्रकृति निघण्टु रत्नाकर', शब्दार्थ-चिन्तामणि-कोष, वैद्यक-शब्द-सिंधु आदि ग्रन्थों में मांस को गरम, देर में हजम होने वाला, और वायुनाशक बताया गया है। उसका पित्तज्वर से कोई सम्बन्ध नहीं है और न वह पित्तज्वर में दिया जा सकता है ।
इसी प्रकार मुर्गे का मांस भी भारी और गरम है।
अतः वैद्यक की दृष्टि से भी पचने में भारी और उष्ण प्रकृति वाले पदार्थ को कोई अतिसार तथा दाह-प्रधान पित्तज्वर में देने को बात नहीं कर सकता।
'मांस' शब्द का अर्थ 'मांस' शब्द से भ्रम में न पड़ना चाहिए । मांस का एक अर्थ 'गूदा' भी होता है । आप्टेज संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी में उसका एक अर्थ 'फ्लेशी पार्ट आव फ्रूट' भी दिया है ।
१-निघण्टुरत्नाकर, भाग १, पृष्ठ १५२ २-शब्दार्थचिन्तामणि कोष, भाग ३, पृष्ठ ५७४ ३-वैद्यक-शब्द-सिंधु कोष, पष्ठ ७३६ ४-सुश्रुत-संहिता ( मुरलीधर-सम्पादित) पृष्ठ ४१४
५-आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी, भाग २, पष्ठ १२५५ । ऐसा ही अर्थ संस्कृत-शब्दार्थ-कौस्तुभ ( चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा-सम्पादित ) ६५५ तथा वृहत् हिन्दी-कोश ( ज्ञानमंडल, काशी ) पष्ठ १०२० में भी दिया है।
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