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तीर्थङ्कर महावीर समुप्पन्नो पित्तजरो तब्बसेण य पाउब्भूओ रुहिराइसारो
--पत्र २८२-२. (६) 'भारतेश्वर-बाहुबलि वृत्ति' में पाठ है
ततः प्रभो षण्मासी यावदतीसारोऽजनि । तस्मिन्नतीसारेडत्यर्थ जायमाने ।
__-भारतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति, भाग २, पत्र ३२९-१ . (७) 'दानप्रदीप' में भगवान् के रोग का उल्लेख इस प्रकार है
गोशालक विनिर्मुक्त तेजोलेश्याऽतिसारिणः ।
-नवम् प्रकाश, श्लोक ४९९, पत्र १५३-१ इन प्रसंगों से भगवान् के रोग का बड़ा स्पष्ट ज्ञान हो जाता है-१ पित्तज्वर, २–दाह, ३-लोहू की टट्टी । लोहू की टट्टी का स्पष्टीकरण त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों में 'अतिसार' (डीसेंट्री' ) कह कर किया गया है । वह अतिसार रक्त का था । अतः उसे रक्तातिसार कहना अधिक उपयुक्त होगा।
पित्तज्वर का निदान अब हमें यह जान लेना चाहिए कि, पित्तज्वर में होता क्या है । निघण्टुरत्नाकर में पित्तज्वर के ये लक्षण बताये गये हैं।
वेगस्तीक्ष्णोऽतिसारश्च निद्राल्पत्वं तथा वमिः । कण्ठोष्ठमुखनासानां पाकः स्वेदश्च जायते ॥ प्रलापो वक्र कटुता मूर्छा दाहो मदस्तृषा । पीतविण्मूत्रनेत्रत्वक्पैत्तिके श्रम एव च ॥ —निघण्टु रत्नाकर ( निर्णय सागर प्रेस ) भाग २, पृष्ठ ८
१–आप्टेज-संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी, भाग १ पष्ट ४८ ।
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