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भगवान् किस रोग से पीड़ित थे
१६१ सामान्यस्य झगितिमरणहेतुः 'दुक्खे' त्ति दुःखो दुःखहेतुस्वात् 'दुग्गे' त्ति क्वचित् तत्र च दुर्गमिवानभिभव नीयत्वात् किमुक्त' भवति ? 'दुरहियासे' त्ति दुरधिसाः सोढुमशक्यः इत्यर्थ 'दाहवकंतीए' त्तिदाहो व्युत्क्रान्तः- उत्पन्नो यस्य स स्वार्थिककप्रत्यये दाहव्युत्क्रान्तिकः 'अवियाई' ति
पिचेत्यभ्युच्चये 'श्राई' त्ति वाक्यालंकारे 'लोहियवच्चापि ' त्ति लोहित वर्चास्यपि — रुधिरात्मकपुरीषाण्यपि करोति, किम-न्येन पीडावर्णनेनेति भावः तानि हि किलात्यन्तवेदनोत्पाद के रोगे सति भवन्ति ...
- भगवती सूत्र सटीक, पत्र १२६९–१२७० ( २ ) ठाणांगसूत्र की टीका में भगवान् के रोग का वर्णन इस प्रकार है
मेडिक ग्राम नगरे विहरतः पित्तज्वरो दाह बहुलो बभूव लोहित वर्चश्च प्रावर्ततः ।
- ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तरार्द्ध', पत्र ४५७–१ । (३) नेमिचन्द्रसूरि-रचित 'महावीर चरियं' में पाठ आता है । ( पत्र ८४ - १ ) सामिस्स तदा जानो रोगायङ्को सक्कम्माश्री || १६२२|| तिब्बो उदरहियासो जिणस्स वोरस्स पित्तजर जुतो । लोहिय वच्चायं पिय करेइ जायइ य अबलतरणू ॥१६२३॥ (४) 'त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र' में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा हैस्वामी तु रक्तातीसार पित्तज्वर वशात् कृशः -पर्व १०, सर्ग ८, श्लोक ५४३, पत्र ११७-२ (५) गुणचन्द्र गणि-रचित 'महावीर - चरियं' में इस प्रसंग का उल्लेख इस प्रकार है
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