SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० तीर्थकर महावीर अपने दान के फलस्वरूप रेवती ने भावी तीर्थंकरों में आयुष्य बाँधा ।' अतः उसके दान का मांसपरक अर्थ लिया ही नहीं जा सकता । भगवान किस रोग से पीड़ित थे एक दृष्टि से यह विचार कर लेने के बाद कि, वह दान मांस नहीं हो सकता, अन्य दृष्टियाँ भी हैं, जिनसे यह गुत्थी और अधिक स्पष्ट रूप में सुलझ सकती है । हम यह पहले कह चुके हैं कि रेवती ने भगवान् को औषधि दी। अब यहाँ समझ लेना चाहिए कि भगवान् किस रोग से पीड़ित थे। इस सम्बन्ध के कुछ उल्लेख हम यहाँ दे रहे हैं:-- (१) समणस्स भगवो महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउन्भूए उजले जाव दुरहिया से पित्तजर परिगय सरीरे दाहवतीए यावि विहरति अवियाई लोहियवच्चाइंपि पकरेइ -भगवती सूत्र सटीक, श० १५, उ० १, सूत्र ५५७, पत्र १२६० इसकी टीका इस प्रकार दी गयी है 'विउले' त्ति शरीरव्यापकत्त्वात् 'रोगायंके' त्ति रोगःपीड़ाकारी स चासावातङ्कश्च व्याधिरिति रोगातङ्कः 'उजले' त्ति उज्ज्वलः पीड़ापोहलक्षणविपक्षलेशेनाप्यकलङ्कितः यावत्करणादिदं दृष्यः-'तिउले' त्ति त्रीन् -मनोवाक्कायलक्षणानांस्तुल यति-जयतीति त्रितुलः 'पगाढ़े' प्रकर्षवान् 'ककसे' कर्कश द्रव्यमिवानिष्ट इत्यर्थः 'कडुए' तथैव 'चंडे' रौद्रः 'तिव्वे' १.-समवायांगसूत्र सटीक, समवाय १५६, पत्र १४३-१; ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तराद्ध, ठाणा ६, उद्देशा ३, सूत्र ६६१, पत्र ४५५:२; प्रवचनसारोद्धार, गाथा ४६६ पत्र १११-१; विविध तीर्थकल्प (अपापावृहत्कल्प ) पष्ठ ४१; सप्ततिशतस्थानं प्सटीक गाथा ३३७ पत्र ८०-१; लोकप्रकाश ( देवचंद लालभाई ) भाग ४, सर्ग ३४, श्लोक ३७७-३८५ पत्र ५५५-२-५५६-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy