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रेवती तीर्थकर होगी
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- इस प्रकार व्रतों में स्थित जो सप्त क्षेत्रों में धन को बोता है और दीनों पर दया करता है, उसे महाश्रावक कहते हैं ।
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सत क्षेत्रों के नाम हेमचन्द्राचार्य ने इस प्रकार गिनाये हैं: -- जैनविम्व १, भवन २, आगम ३, साधु ४, साध्वी ५, श्रावक ६ श्राविका ७ हमने रेवती के लिए व्रतधारिणी श्राविका कहा है । अतः इसे भी यहाँ समझ लेना चाहिए ।
श्रावक अथवा उपासक' के दो भेद जैन - शास्त्रों में बताये गये हैं । निशीथ में आता है
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उवासगो दुविहो-वती श्रवती वा ? जो अवती सो परदंसण संपरणो । एक्के को पुणो दुविहो-नायगो अनायगो वा अणुवासगो पि नायगमनायगो य । एते चेव दो विकप्पा'
- निशीथसूत्र सभाष्य चूर्णि उद्देशा ११ ( गा० ३५०२ की टीका, पृष्ठ २२९
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रेवती के व्रतधारिणी श्राविका होने का उल्लेख उन समस्त स्थलों पर है, जहाँ उसका नाम आता है ।
अतः रेवती से हिंसा की कल्पना करना एक बड़ी भारी भूल और जैन - साहित्य तथा परम्परा के प्रति अज्ञानता करना है ।
रेवती तीर्थङ्कर होगी
हम ऊपर कह आये हैं कि, हिंसा नरक-प्राप्ति का कारण है । पर,
१ - योगशास्त्र सटीक, पत्र २०४-२
२. -उपासकाः श्रावकाः
-- अभिधानचिंतामणि, स्वोपज्ञ टीका सहित, २ देवकांड, श्लोक १५८, पृष्ठ १०४
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