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________________ रेवती तीर्थकर होगी १५६ - इस प्रकार व्रतों में स्थित जो सप्त क्षेत्रों में धन को बोता है और दीनों पर दया करता है, उसे महाश्रावक कहते हैं । १ , सत क्षेत्रों के नाम हेमचन्द्राचार्य ने इस प्रकार गिनाये हैं: -- जैनविम्व १, भवन २, आगम ३, साधु ४, साध्वी ५, श्रावक ६ श्राविका ७ हमने रेवती के लिए व्रतधारिणी श्राविका कहा है । अतः इसे भी यहाँ समझ लेना चाहिए । श्रावक अथवा उपासक' के दो भेद जैन - शास्त्रों में बताये गये हैं । निशीथ में आता है - उवासगो दुविहो-वती श्रवती वा ? जो अवती सो परदंसण संपरणो । एक्के को पुणो दुविहो-नायगो अनायगो वा अणुवासगो पि नायगमनायगो य । एते चेव दो विकप्पा' - निशीथसूत्र सभाष्य चूर्णि उद्देशा ११ ( गा० ३५०२ की टीका, पृष्ठ २२९ " रेवती के व्रतधारिणी श्राविका होने का उल्लेख उन समस्त स्थलों पर है, जहाँ उसका नाम आता है । अतः रेवती से हिंसा की कल्पना करना एक बड़ी भारी भूल और जैन - साहित्य तथा परम्परा के प्रति अज्ञानता करना है । रेवती तीर्थङ्कर होगी हम ऊपर कह आये हैं कि, हिंसा नरक-प्राप्ति का कारण है । पर, १ - योगशास्त्र सटीक, पत्र २०४-२ २. -उपासकाः श्रावकाः -- अभिधानचिंतामणि, स्वोपज्ञ टीका सहित, २ देवकांड, श्लोक १५८, पृष्ठ १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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