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varayan
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तीर्थङ्कर महावीर णवणीतं, चत्तारि महाविगतीयो पं० तं०-महुं, मंसं, मजं, णवणीतं -टाणांगसूत्र सटीक, पूर्वार्द्ध , ठा० ४, उ० १, सत्र २७४ पत्र २०४-२
इन प्रसंगों से यह बात भली प्रकार समझी जा सकती है कि, जैनशास्त्रों में मांस कितना निषिद्ध है ।
कुछ भी कहने से पूर्व और किसी भी प्रकार का उलटा-सीधा अनुमान लगाने से पूर्व, हर व्यक्ति को इन बातों को स्मरण रखनी चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जो बात कह रहा है, वह परमोत्कृष्ट अहिंसा के पालन करने वाले, पालन कराने वाले भगवान् महावीर के लिए कह रहा है जिसने आजीवन दुरूह से दुरूह तपस्या को ही अपना संकल्प माना।
दान का दाता कौन ? यहाँ यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि उस दान का दाता कौन था ?
दानदातृ रेवती व्रतधारिणी श्राविका थी। कल्पसूत्र में रेवती और मुलसा को भगवान्के संघ की श्राविकाओं में मुख्य श्राविका लिखा गया है।' श्रावकों के व्रत आदि का विस्तृत उल्लेख हमने श्रावकों के प्रसंग में किया है । यहाँ केवल महाश्रावक की हेमचन्द्राचार्य द्वारा दी हुई परिभाषा मात्र दे देना उचित समझता हूँ।
एवं व्रतस्थितो भक्त्या सप्त क्षेत्र्यां धनं वपन् । दयया चाति दीनेषु महाश्रावक उच्यते ।
-~--योगशास्त्र स्वोयज्ञ टीका सहित, पत्र २०४२ से २०९-२ १-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, सूत्र १३७, पत्र ३.७ । ऐसा ही उल्लेख 'दानप्रदीप' में भी है । वहाँ आता हैश्रूयते रेवती नाम श्रमणोपासिकाग्रणी
-प्रकाश ६, श्लोक १२०, पत्र २०४-२
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