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घी-दूध भी विकृतियाँ घी-दूध भी विकृतियाँ
मांस को कौन कहे, जैन साधु के लिए तो घी-दूध आदि भी मना है । इस सम्बन्ध में कुछ प्रमाण हम यहाँ दे रहे हैं:
पत्र १००-१
( १ ) प्रश्नव्याकरण में पाठ आता है:
खीर महु सपिएहिं ...
- प्रश्नव्याकरण अभयदेव की टीका सहित, संवरद्वार १, सूत्र २२:
इसकी टीका में स्पष्ट लिखा है
अक्षीर मधुसर्पिष्कैः- दुग्ध क्षौद्र घृत वर्ज कैः
वही, पत्र १०७ -१
( २ ) इसी प्रकार का उल्लेख सूत्रकृतांग में भी है । वहाँ भी 'विगइया' का निषेध किया गया है। उसकी दीपिका में लिखा हैनिर्विकृत्तिकाः घृतादि विकृतित्यागिनः
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- सूत्रकृतांग ( बाबू वाला ) पृष्ठ ७६५
( ३ ) विकृतियों का बड़ा विस्तृत उल्लेख ठाणांगसूत्र में आता है । णव विगतीतो पं० तं० - खीरं, दधि, णवणीतं, सप्पि, तेलं, गुलो, महुं, मज्जं, मंसं
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ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तरार्द्ध, टा० ९, उ०३, सूत्र ६७४ पत्र ४५० - २ - विगतियाँ ९ हैं—१ दूध, २ दही, ३ नवनीत, ४ घी, ५ तेल, ६ गुड़, ७ मधु, ८ मद्य और ९ मांस
ठाणांग में ही अन्यत्र आता है:
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चत्तारि गोरस विगतीओ पं० तं खीरं, दहि, सपि, णवणीतं, चत्तारि सिणेह विगतीओ पं० तं० - तेलं, घयं, वसा,
१ - सूत्रकृतांग ( बाबू वाला ) श्रु० २, अ०२, सूत्र ७२, पृष्ट ७५६
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