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________________ अन्य धर्म-ग्रन्थों में जैनियों को अहिंसा १५५ जैन-शास्त्रों में पाप का भोगी बताया गया है। हेमचन्द्राचार्य-रचित योगशास्त्र में एक श्लोक आता है--- हन्ता, पलस्य, विक्रेता, संस्कर्ता, भक्षकस्तथा । क्रेताऽनुमन्ता दाता च घाता एव यन्मनुः ॥' -योगशात्र स्वोपज्ञ टीका-सहित, ३-२०, पत्र १६०-१ -मारने वाला, मांस का बेचने वाला, पकाने वाला, खाने वाला, खरीदने वाला, अनुमति देने वाला तथा दाता ये सभी घातक ( मारने वाले ) है-- ऐसा मनु का वचन है । __ अन्य धर्म-ग्रर्था में जैनियों की अहिंसा अहिंसा जैन धर्म का मूल तत्त्व रहा है, ऐसा उल्लेख बौद्ध-ग्रन्थों में भी भरा पड़ा है । संयुक्तनिकाय में असिबन्धकपुत्र ग्रामणी का उल्लेख आता है । उससे बुद्ध ने पूछा कि, महावीर स्वामी श्रावकों को क्या उपदेश देते हैं। इसके उत्तर में असिबंधक ने भगवान् महावीर के जिन उपदेशों की सूचना बुद्ध को दी, उनमें प्रथम उपदेश का उल्लेख इस प्रकार है"जो कोई प्राणि-हिंसा करता है, वह नरक में पड़ता है ।"* मांसाहार से मृत्यु अच्छी जैन-लोग मांसाहार से मृत्यु अच्छी समझते रहे हैं । इस सम्बन्ध में एक बड़ी अच्छी कथा आती है। द्वारमती में अरहमित्त नामक एक श्रोष्ठि रहता था। उसकी पत्नी १-मनु का मूल श्लोक इस प्रकार हैअनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रय विक्रयी संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः । --मनुस्मृति ( हिन्दी-अनुवाद सहित ) अ० ५, श्लोक ५१ पृष्ठ १२३ २-संयुक्तनिकाय ( हिन्दी-अनुवाद ), भाग २ पृष्ठ ५८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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