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________________ मांसाहार से नरक-प्राप्ति १५३ -गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए जाते हुए मुनि को यदि ज्ञात हो जाये कि यहाँ मांस वा मत्स्य अथवा मद्य वाले भोजन मिलेंगे तो...'मुनि को उधर जाने का इरादा नहीं करना चाहिए । हेमचन्द्राचार्य ने अपने योगशास्त्र में बड़े विस्तार से हिंसा ली निंदा की है । विस्तारभय से हम यहाँ पूरा पाठ नहीं दे रहे हैं।' मांसाहार से नरक-प्राप्ति जैन-शास्त्रों में मांसाहार नरक-प्राप्ति का एक कारण बताया गया है । हम यहाँ तत्सम्बन्धी कुछ प्रमाण दे रहे हैं: (१) चउहि ठाणेहिं रतियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा महारंभताते, महापरिग्गहयाते, पंचिदिय वहेणं, कुणिमाहारण -ठाणांगसूत्र सटीक (पूर्वार्द्ध) ठा० ४, उ० ४ सूत्र ३७३ पत्र २८५-२ इन चार कारणों से जीव नारक योग्य कर्म बाँधता है-१ महारंभ २महापरिग्रह, ३ पंचेन्द्रियवध और ४ मांसाहार ( कुणिम' मिति मांसं तदेवाहारो-भोजनंतेन-टीका) (२) गोयमा ! महारंभायाए, महापरिग्गहयारा, कुणिमाहारेणं, पंचिदिय वहेणं नेरइया उयकम्मा सरीरप्प योगनामाये कम्मरस उदएणं नेरइयाउयकम्मा सरीर जाव पयोग बंधे -भगवतीसूत्र सटीक, शतक ८, उद्देशा ९, सूत्र ३५० पत्र ७५२ (३) चउहिं ठाणेहिं जीवाणेरइयत्ताए कम्मं पकरति गेरहताए कम्मं पकरेत्ता णेरइएसु उववजंति तंजहा महारंभयाए, महापरिग्गहयाय, पंचदिय वहणं, कुणिमाहारेणं -औपपातिकसूत्र ( सुरू-सम्पादित), सूत्र ५६, पृष्ठ ५४ १-योगशास्त्र स्वोपज्ञ टीका सहित, प्रकाश २ श्लोक १६-३८ पत्र ६६-२ से १७-१ तथा प्रकाश ३, श्लोक १८-३३, पत्र १५६-१-१६४-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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